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११८ में उपयोगी हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। यदि ऐसा न हों तो एक दूसरे के विरोधी बन जाएंगे।
दोनो पंडित शेठ के यहां खाना खाने गये, शेठने दोनों को अलग अलग कमरे में बिठाया, दोनों के मन में पूर्वाग्रह थे, दोनों चाहते थे कि उन्हें दूसरे से अधिक सन्मान मिले । न्यायशास्त्रीने शेठ से कहा- “शेठ! व्याकरणशास्त्री को न्याय का बिल्कुल ज्ञान नहीं, वह गधा है।" ऐसा कहकर अपने न्याय का प्रदर्शन किया। फिर बारी आई व्याकरणशास्त्री की, वह बोला "न्यायशास्त्री तो बैल जैसा है, उसे व्याकरण का तनिक भी ज्ञान नहीं, कहाँ षष्ठी और कहाँ सप्तमी का प्रयोग करना है, उसे मालूम ही नहीं।" ऐसा कहकर अपनी भाषा का प्रदर्शन किया।
शेठ समझ गये ये दोनों पोथे पंडित हैं, अन्दर से जले हुए हैं, जीवन में शून्यता है। पंडित और ऐसे? संस्कारी इन्सान ऐसे होते हैं ? विद्या, शास्त्र, चारित्र्य वगैराह जीवन में नहीं पचा सकते, तो उनके शब्दों में से भी दुर्गंध आती है। उन्होंने तय किया इन राह भूले हुए पंडितो को सही मार्ग बताने का काम वो करेंगे।
दोनों को खाना खाने बिठाया, पहले चांदी की थाली में एक को भूसा परोसा, दूसरे को घास परोसी। पंडित तो यह देखकर क्रोध में लाल पीले हो गये, जोर से चिल्लाए, “हमारा ऐसा घोर अपमान?'' शेठने कहा, “गर्म मत होईये, यदि मैं आपके जैसे पंडितों का कहना नहीं मानूं तो कैसे चले ? जैसा आपने कहा वैसा ही मैंने किया। गधे के पास भूसा और बैल के पास घास परौसी, मेरे समझने में कोई भूल हुई क्या?" पंडित शर्मा गये। शेठने उन्हें कहा कि, “शास्त्रों का अध्ययन किया है, मगर दृष्टि खुली नहीं है। इसीलिए मैंने यह ज्ञान आपको दिया है कि, दूसरों को नीचा दिखाने वाला कभी उपर नहीं चढ़ सकता।" शेठ की बात सुनकर, दोनों ने परस्पर एक दूसरे से माफी मांगी, इस तरह शेठ ने दोनों को सन्मान से सुधारा।
___ इस संसार में, दोष तो किसमें नहीं होते? परंतु दूसरों की त्रुटियों को न देखते हुए, यदि गुण ही देखे जाएं तो पूरा विश्व शान्तिमय बन सकता है।
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