________________
४७
इस तत्त्वज्ञान को हम समझ पाएं है, ऐसा तभी कह सकते है, जब जीवन के प्रत्येक पहलू का स्पर्श हों, जीवन सरल, सादा और प्रेममय बने।
कठिनाई यह है कि हम बोलने को सदा तैयार हैं, पर दूसरों की बात सुनने को तैयार नहीं। “मुझे सुनो, मेंरी सुनो।" ऐसा ही मत कहो, सामने वाले को भी कहने का मौका दो, जब उसका हृदय खाली हो जाएगा तब तुम्हारे विचार उसके हृदय में प्रवेश कर सकेंगे। दूसरों के प्रश्न, शंकाओं का प्रेम से समाधान करने की कोशिश करो, सफलता सहज साध्य बनेगी। ज्यादातर लोग बुद्धि से शायद समझते हैं परंतु उनके आचरण में यह बात दिखाई नहीं देती आखिर तो अपना आचरण ही दूसरों में आचरण प्रगट कर सकता है।
एक करोडपति शेठ थे, अत्यंत कंजूस, उनमें उदारता का नाम तक नहीं था। जो कुछ था, उसकी सुरक्षा कैसे हो? सदा उसकी ही चिंता लगी रहती थी। एक बार मन की शांति हेतु चांदनी रात में सागरतट पर जाकर बैठे, मुँह पर चिंता और विषाद की रेखाएं थी।
थोडी देर बाद दूसरे शेठ वहां आए, उन्होंने पहले वाले शेठ के मुँह पर उदासी देखी, सच है जो कंजूस होता है, उसके मुख पर लाली, प्रकाश कहाँ से होगा? जो दाता बनकर देता है उसी के मुँह पर लाली प्रसन्नता दिखेगी। दूसरे शेठ को लगा बिचारे दुखी है, शायद आत्महत्या करने आए हैं, यह सोचकर शेठ उसके पास गये। अपने नाम का कार्ड और दस डॉलर दिए, अधिक सहायता चाहिए तो पेढी पर आने को कहा। इस शेठ के मन में करूणा रूपी झरना बह रहा था, सच्ची दया थी, दूसरों को मुसीबत में देखकर जिसका हृदय द्रवित हो, वही सच्चा इन्सान है।
दानवीर शेठ तो भेंट देकर चले गये, पर हाथ में डॉलर देखकर करोडपति शेठ सोचने लगे, “इन्सान में ऐसी उदारता ऐसा प्यार भी हो सकता है?" उस शेठ की मानवता ने इस शेठ के हृदय में भी मानवता जगाई, दीप से दीप प्रज्जवलित हुआ। हृदय में स्पंदन जागृत हुआ, बिना स्वार्थ भी दूसरों के दुख में रोने वाले लोग दुनिया में मौजूद हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org