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दया का झरना
धर्मी आत्मा का मन दया से आर्द्र तथा कोमल होना चाहिए, जैसा कि इस प्रार्थना में कहा है -
“दीन, क्रूर ने धर्म विहोणा, देखी दिल मां दर्द रहे।"
धार्मिक जड़ नहीं होता, धर्म तो जडता को दूर करता है। जब जीवन में धर्म आता है, ज्ञान आता है, इन्सान का हृदय दया का झरना बन जाता है। फिर तो जैसे निर्मल पानी में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है, वैसा ही उसके मन में विश्व के सुख-दुख प्रतिबिम्बित होने लगते हैं।
दया धर्म का मूल है, चाहें विश्व का कोई भी धर्म हों, जहाँ दया नहीं, वहाँ धर्म सम्भव ही नहीं। जो क्रूर एवं निष्ठुर हो, वह दूसरों के दुःख क्या महसूस करेगा? वह धार्मिक नहीं बन सकता।
यदि इन्सान को ज्ञान नहीं है तो दया-क्रूरता के बीच का फर्क कैसे जानेगा? अज्ञानी व्यक्ति तो दया के नाम पर हिंसा करके, अपने आप को दयालु कहलाएगा, इसलिए जब दया का काम करने जाओ, तब ज्ञान का दीपक साथ में होना चाहिए। इन्सान थोडा सा जान लेता है तो ज्ञान का गर्व आ जाता है, अथवा ज्ञान की जड़ता आ जाती है। अंधेरे में गुड़ तो मीठा ही लगता है परंतु यह जानना जरूरी है कि कहीं उस पर छिपकली की लार तो नहीं गिरी है। यह विवेक है।
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