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चंदनबालाजी मृगावतीजी को केवल इतना ही कहती हैं कि, “आर्याओं को उपयोग की शून्यता शोभा नहीं देती।' मृगावती की आत्मा केवल इतने से शब्दों से जाग उठी, वे साधक थी, केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई।
जब मानसिक विकास बढ़ता है, फिर अयोग्य कार्य करने का मन ही नहीं होता, और कभी हो जाए तो पश्चाताप कर के, फिर ऐसा अकार्य करने - की प्रवृत्ति होती ही नहीं।
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