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आग्रह किया कि वह कसाई का धंधा करे। परंतु उसे तो अभय कुमार की मैत्री का सहयोग मिला था, हृदय में करूणा का स्रोत बह रहा था, उसने यह धंधा स्वीकार नहीं किया। अभय कुमार के साथ बैठने उठने वाला व्यक्ति भला जीवों को कैसे मार सकता है? यह संगत का असर है।
सुलस धंधा बंद करता है, सगे संबंधियों ने यह कहकर समझाया कि वो भी इस धंधे में भागीदार बनकर पाप को बाँट लेंगे। परंतु सुलस यह जानता था कि नफे में भागीदारी करने सब आते हैं, पाप में कोई नहीं, उसे पता था कि कहने वाला हट जाएगा, करने वाला फंस जाएगा। ऐसे समय विवेक रखना, पाप करते वक्त जागृत रहना जरूरी है।
सुलस ने बहुत मना किया, पर कुटुम्बीजन नहीं माने, तब उसने एक युक्ति की, कुल्हाडी लेकर अपने पैर पर मारी। लहु की धारा बहने लगी, उसने सबसे कहा, “मेरी यह पीडा बाँट लो, दुख के भागीदार बनना चाहते हो तो।" उन्होंने कहा, “घाव तुम्हें हुआ है, तुमने ही किया है, अब पीडा तुम्हारी, हम तो ज्यादा से ज्यादा पट्टी बांध सकते हैं। तुम्हें ही सहन करना होगा।" तब सुलस ने कहा, “मैरे पाप में भागीदारी कैसे लोगे?'' इस तरह सुलस ने कुल्हाड़े के प्रयोग से सबको बोधपाठ दिया, “मेरे घाव में भागीदार नहीं बन सकते तो पाप में कैसे बनोगे?"
अच्छे मित्र, अच्छी संगत, अच्छा वातावरण हमें पाप कर्मों से बचाकर हमारी मदद करते हैं। बुरे कामों से बचने के लिए अच्छे मित्र सहायक बनते हैं, इसी को लज्जा गुण कहते हैं। . पचास साल पहले लोग रास्ते पर बीड़ी पीने में शर्माते थे, अब तो मुंह में पान, सिगारेट रखकर, रास्तों में पिचकारियां मारते हुए नहीं शर्माते, मानों चारों और नादिरशाह घूम रहे हों।
__जन्म के साथ किसी को कोई व्यसन नहीं होता, ये तो नासमझ, निर्बलता तथा अज्ञान है जो दुराचार की तरफ ले जाते हैं, आज व्यसन हमारे मालिक बन बैठे हैं, हम गुलाम। इन्सान को व्यसन मुक्त जीवन जीना चाहिए।
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