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६२ है, रोता है, मैं आपसे विनती करती हूं।"
झूले पर झूला झूलती हुई शेठाणी चिल्लाई, “अरे जा तू कौन होती है? मुझे मना करने वाली। मेरा बच्चा तो खाएगा।'' गरीब औरत को बहुत आघात लगा, वह जैसे ही वहां से बाहर निकली उसके बेटे ने कहा, “माँ बादाम?" माँ को गुस्सा आया, उसने पास ही पड़े पत्थर को उठाकर बेटे के सर पर दे मारा। खून की धार बह निकली, धीरे-धीरे घाव तो ठीक हो गया, पर निशान रह गया।
वर्षों बीत गये, वह लडका बड़ा होकर आज खूब रईस बन गया, मगर रोज काँच में अपना चहेरा देखता है तब मानों वह घाव उससे कह रहा है, “दूसरे की लक्ष्मी ने तेरे कपाल पर घाव दिया है, ध्यान रहे तुम्हारी लक्ष्मी किसी के कपाल पर घाव न कर दे।" इस तरह इस व्यक्ति ने इस दुखद घटना से बोधपाठ लिया, कई बार दुख भी सुखरूप बन जाता है।
ऐसी ही दृष्टि रखना पाँचवा सद्गुण है। इसमें दो भाव छिपे है- स्वयं के प्रति कठोरता, दूसरों के प्रति कोमलता, ऐसे सद्पुरूष के हृदय का वर्णन इस सुभाषित में किया है।
वज्रादपि कठोराजि, मृदुनि कुसुमादपि।
दूसरों के आंसू देखकर जिसका हृदय द्रवित हो उठे, वहीं अपने जीवन में संयम, नियम पालन के लिए तथा विषमता आने पर उसका सामना करने के लिए वज्र से भी कठोर बन जाता है, हमें भी ऐसा ही बनना चाहिए।
___ कवि श्री निरालाजी को पुरस्कार में १२५ रूपये मिले, वो लेकर घर जा रहे थे, रास्ते में एक भिखारिन को देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा, उन्होंने उसे उन पैसों से अंबर चर्खा दिलाकर उसे रोजगार का जरिया प्रदान किया। पत्नी ने पुरस्कार का पूछा तब उन्होंने कहा “एक औरत को ऐसी बेहाल दशा में देखकर मैंने मदद न की होती, तो ऐसा हैवान पति तुम्हें अच्छा लगता?' पत्नी भी उनकी सुंदर भावना देखकर खुश हो गई।
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