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अपनी पीड़ा लगे, अंतर में समभाव रहे, वह दाक्षिण्यवान व्यक्ति है। ये सद्गुण खरीदे नहीं जा सकते, न ही अचानक आ जाते हैं, यह तो साधना है, जागृति की।
___ आदि कालीन आदतें एकदम से नहीं छूटती। बीडी, तम्बाकू आदि की आदतें हमारे अन्दर घर कर जाती है, उन्हें छोड़नी मुश्किल हो जाती है, फिर ये तो दुर्गुणों की आदते हैं, आदि कालीन है। तैली के कपड़ों को खूब धोने से वे भी साफ हो जाते हैं, सतत धोने से अधिक साफ हो जाते हैं। इसी तरह अपने मन को साफ करने के लिए ध्यान रूपी साबुन का प्रयोग किया जाए तो मन पर लगे दाग भी दूर किए जा सकते हैं।
दुष्ट व्यक्ति दान देगा, गलत तरीके से पैसा आएगा तो भगवान से कहेगा “प्रभु! आप दुर्जन व्यक्ति को सज्जन बना देते है तो क्या काले धन को सफेद नहीं बनाओगे?" यह कोई दान नहीं है, बिगडा हुआ अनाज जब घर में नहीं रख सकते, तब उसका दान देना क्या सच्चा दान है?
दान तो अपनी प्रिय वस्तु का, ऊंची चीज का देना चाहिए, वही दान फलता है। ___ नचिकेता ने अपने पिता को बूढी गायों का दान देते देखा तो पूछा "आप ऐसी गायों को ही दान में क्यों देते हैं ?'' यह सच्चा दान नहीं है। ऐसी ही महासती द्रौपदी के पूर्वभव में एक घटना घटी थी। साधु को कडवी धीया की सब्जी दान में दी थी, परिणाम यह हुआ कि उसके असंख्य भव बढ़ गये। दान तो श्रेष्ठ वस्तु का तथा प्रेमपूर्वक ही होना चाहिए, यह हमारे उदार दिल तथा भावों का प्रतीक है। बिना भावपूर्वक दिया हुआ दान केवल लेन-देन बनकर ही रह जाता है, ऐसे दान से तो केवल प्रशंसा, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि खरीदने के बराबर है, दान कोई व्यापार नहीं, व्यापार के लिए तो दूसरे कई क्षेत्र हैं।
सच्चा दान मनुष्य के संकुचित मन को विकसित बनाने का सुंदर साधन है, यह संग्रह वृत्ति का नाश करता है। दान देने वाले थोड़े लोग भी होंगे
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