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एक जगह दो वृद्ध स्त्रियां रहती थी । एक का नाम था रिद्धि, दूसरी का नाम था सिद्धि। सिद्धि ईर्ष्यालु थी, पहले वह पेन्सिल जैसी थी अब सुई जैसी हो गई थी, ईर्ष्या में जलजलकर । उसने सोचा "उस रिद्धि की संपत्ति का नाश करूं तब ही मुझे चैन मिलेगा ।" उससे दूसरों की महानता, उत्कर्ष देखा नहीं जाता था ।
इसलिए उसने तप करके देव को प्रसन्न किया, देवने पूछा, "इस तरह जल क्यों रही हो?" उसने कहा, "रिद्धि का उत्कर्ष देखकर मैं जल रही हूं, हे देव मुझे सुखी करो और उस रिद्धि को दुखी करो। " देव ने कहा यह नहीं हो सकता, क्यों कि उसका पुण्य प्रबल है, परंतु यह हो सकता है कि तुम जितना मांगोगी उससे दुगुना उसे मिलेगा । सिद्धि ने कहा, “ठीक है ऐसा करो। " देव ने कहा, “तथास्तु ।”
सिद्धि ने एक घर तथा उसके सभी कमरों में एक एक कुआ मांगा, अब रिद्धि को दो घर तथा हर कमरे में दो दो कूए मिले। अब सिद्धि ने कहा “मेंरी एक आँख फूटे, जिससे उसकी दोनों आँखे फूट जाए, वह अंधी हो जाए, और कूए में गिर पड़े।" आपने देखा, ईर्ष्या में जलती हुई सिद्धि अपनी एक आँख फोडकर भी उसे अंधा बनाना चाहती थी।
व्यक्ति की तुच्छता, ईर्ष्या, छिछोरेपन के कारण आज घर-घर में कलह हो रहे हैं । खाना मिल रहा है, कपडे है, पैसे हैं, फिर भी देवरानी-जेठानी में छोटी छोटी बातों को लेकर झगडे हो रहे हैं ।
जीवन में यदि सुखी होना है, तो छोटी छोटी बातों की उपेक्षा करके उदारता अपनानी पडेगी ।
हमें बीरबल की बड़ी रेखा और सिद्धि की ईर्ष्या को ध्यान में रखना होगा । जिन्हें धर्म में आगे बढ़ना है, उन्हें दुसरों की रेखा को छोटी करने के बजाय अपनी रेखा को बडी करनी चाहिए । यही जीवन की सफलता का सच्चा मंत्र है।
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