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अफ्रिका में चरोत्तर के एक व्यापारी बहुत धनी तथा साथ ही साथ सज्जन भी है, रहते हैं। उनके माथे पर एक घाव है, कई मित्रों ने उनसे कहा, “प्लास्टिक सर्जरी करवालो'' उन्होंने कहा- “यह घाव तो मेरा गुरू है। यदि यह न होता तो मैं मानव नहीं होता, मेरे हृदय में जो दया का झरना बह रहा है, वह भी नहीं होता।"
एक मित्र ने घाव का राज पूछा तब उन्होंने कहा कि वो बचपन में गरीब थे, वो तथा उनकी माँ झोपडे में रहते थे, माँ घर पर चक्की में अनाज पीसकर गुजारा चलाती थी। पास में ही बड़ी हवेली थी, उसके चौक में सब बच्चे इकट्ठे होकर खेलते थे। जो बच्चे खेलने आते थे वे सब धनिकों के बच्चे थे। एक बच्चे की माँ ने उसकी जेब में काजु, बादाम भर कर कहा कि वो अकेला ही खाए, किसी को न दे। अब यह सोचने की बात है कि हमारी ऐसी शिक्षा कहाँ तक उचित है, बच्चा जब बड़ा होगा वह माँ-बाप को अंगूठा भी दिखा सकता है। कोने में बैठकर तो श्वान भी अकेला खाता है। इन्सान को बाँटकर खाना चाहिए। हम कई लोगों को आमंत्रण देते हैं, खाना खिलाते हैं, परंतु अपने लाभ के लिए। कभी किसी गुणवान संत, न्यायी को हम निमंत्रण देते है?
हम जैसा देते है दुनिया से वैसा ही पाते हैं। Law of nature. यह कुदरत का नियम है। अच्छा देंगे, अच्छा मिलेगा, बुरा देंगे, बुरा पायेंगे। हाँ फल मिलने में देर-सवेर हो सकती है, परंतु कुदरत के यहाँ देर है अन्धेर नहीं।
___ अब एक दिन उस धनिक बच्चे को काजु-बदाम खाते देखकर गरीब बच्चे ने उससे मांगे। उसने नहीं दिए, अंगूठा दिखाया। लडका माँ के पास आकर रोने लगा, काजु-बादाम मांगने लगा, माँ की आँखो में आंसू आ गये, हृदय द्रवित हो उठा। वह उस लडके की माँ के पास जाकर बोली "बहन! आपको पैसा अपने पुण्य से मिला है, अच्छा है, मुझे आनंद है, मगर आपके बच्चे को काजु-बदाम देकर खेलने मत भेजा करो, मेरा बच्चा भी मांगता
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