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बनकर सुलझाते। अपनी ज्ञाति में भी अगुवा, सब काम न्यायपूर्वक करते थे, यह समभावात्मक दृष्टि उनका स्वभाव बन गई थी।
उनके जीवन का एक प्रसंग बना, उनके बेटे ने अपनी सगाई तोड दी, गाँव था, हाहाकार मच गया। शेठ ने गाँव के लोगो को न्याय करने को कहा। शेठ न्याय की गद्दी पर बैठे, उनको अपने भूतकाल में किए गये न्याय याद आए। एक बार ऐसी ही भूल के लिए उन्होंने किसी को हजार रूपये दंड तथा तीन माह तक उनके साथे व्यवहार बंद की सजा सुनाई थी। उन्होंने अपने पुत्र के न्याय को तोलते हुए कहा कि, "मुझे पाँच हजार का दंड तथा बारह महिनों तक मेरे साथ सबका व्यवहार बंद।" ___लोग चकित हो गये "शेठ इतनी भारी सजा?' शेठ ने कहा, “मैं आगेवान हूं, मेरी सजा तो अधिक ही होनी चाहिए।'' आज शेठ नहीं रहे परंतु आज भी लोग उनके न्याय को याद करते हुए कहते है, "न्याय तो पानाचंद शेठ का।'' इसको कहते हैं लोकप्रियता से जन्मी हुई न्याय भरी नम्रता तथा विनय । सुरभि तथा शीतलता से चंदन की शोभा है, सुधा की सौम्यता से जैसे चंद्र सुशोभित है, तथा माधुर्य से ही अमृत मीठा है, इसी प्रकार विनय तथा नम्रता से ही मानव-जीवन की शोभा है। विनय करके ही दूसरों के हृदय में स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
लोकप्रियता का तीसरा सद्गुण है शील की सुरभि। ज्ञानी से एक बार पूछा गया, जीवन में कम से कम क्या होना चाहिए? जवाब मिला अपरिग्रह तथा शील (अच्छा चरित्र)। समाज का मानस कितना नीचे जा रहा है? जानना है तो अभिनेता तथा अभिनेत्रियों के चित्रोंवाले विभिन्न पत्र पत्रिकाओं की खपत से जाना जा सकता है।
ऐसे समाज को बदलने के लिए, संपूर्ण वातावरण को बदलना जरूरी है, इसकी शुरूआत अपने घर से होनी चाहिए। वातावरण के अणुअणु को शील की सौरभ छूएगी तभी यह दुर्गन्ध दूर होगी। आपसे मिलने आने वाला व्यक्ति आपके शील सौरभ से सुरभीत हो उठे ऐसी अवस्था होनी चाहिए। और यह तभी संभव है जब शील ही आपका जीवन हो। सुदर्शन शेठ, विजया
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