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विनय-दर्शन
स्व-पर का कल्याण हों वही सच्ची लोकप्रियता है। धार्मिक व्यक्ति में यह लोकप्रियता अंदर से आती है, यह बाहर की बातों से या भाषणों से नहीं आती, दुनिया इतनी मूर्ख नहीं जो झुठे को सच्चा मानें, ये भावनाएं जब जीवन में उतरती हैं, तभी दुनिया मानती है और तभी व्यक्ति लोकप्रिय बनता है।
यह विश्व सागर के समान चंचल है, गुणहीन मनुष्य लोकप्रिय होने की कोशिश में लगा रहेगा, फिर भी थोडे ही वक्त में सच्चाई सामने आते ही वह दूर फेंक दिया जाएगा। लोकप्रवाह में काम करना अग्नि के साथ खेलने के समान है, अग्नि के पास जाना है तो पानी बनकर रहना होगा।
कुछ सेवक शिकायत करते हैं कि समाज कद्र नहीं करता, पर सच तो यह है कि ऐसे लोगों में ऐसे कोई गुण नहीं होते कि जिनकी कद्र की जाए। समाज की सेवा करनी है तो परीक्षा तो होगी, स्वर्ण भी अग्नि में जलकर ही शुद्ध होता है। आडंबर, खुशामद से लोकप्रियता नहीं बढ़ती है, हाँ बढ़ती है सद्गुणों से, सदाचरण से। लोकप्रिय व्यक्ति के तो विचार भी उदार होने चाहिए। आज मन की संकुचितता से लोग हीनग्रन्थि से ग्रसित होते हैं, यही वजह है कि जगह जगह पर झगडे, विवाद, मारामारी, सम्प्रदाय बढ़ रहे हैं। आज शिक्षा बढ़ी है परंतु विचारों की संकुचितता से, प्रांत भाषाऐं सब बढ रहे हैं, बटवारे हो रहे हैं।
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