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३७ जाएंगी, पर बाद में बूंदे पानी के रूप में तवे पर दिखाई देंगी। जो बूंदे जल गइ उनका त्याग व्यर्थ नहीं गया। उन बूंदोने तवे को ठंडा किया, तब बाद की बूंदे पानी के रूप में बची। समर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाता, श्रवण, मनन रूपी समर्पण का भी जीवन में यही स्थान है। काम की शुरूआत करते ही हम कहते हैं, 'काम किया' जब से हम जीवन परिवर्तन की शुरूआत करते हैं, हमारा पथ प्रकाशित होने लगता है। धार्मिक जीवन यानि कि, “आंतरिक सूक्ष्म परिवर्तन।"
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