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के रखवाले बनना चाहिए। श्रीपाल की माता कमलप्रभा युवा रानी थी, रात्रि के समय पुत्र को लेकर जा रही थी। सामने से युवकों की एक बड़ी टोली सामने आयी, क्षणभर के लिए कमलप्रभा काँप उठी। एक युवक ने सामने आकर कहा “बहन डरो मत, जिसके पास एक भाई खडा हों वह भी निर्भय रहता है, तो आपके साथ सात सौ भाई है, आपको डर किस बात का?" युवकों में शक्ति के साथ-साथ ऐसी समझदारी भी होनी चाहिए।
लोकप्रियता के तीन गुण है- दान, विनय और शील, जो विनयवान है तथा उदार है वह दुनिया में प्रिय हो सकता है। जो सचमुच उदार है, वह अपनी प्रिय वस्तु भी दूसरों के कल्याण के लिए अर्पण कर सकता है।
दुनिया में कुछ लोग तो मानों केवल संग्रह करने के लिए ही जन्में है। जीवन में कुछ भी भोग नहीं सकते, कंजूस बनकर अपनी भावनाओं को कुचल देते हैं। कुछ लोग दान देकर पश्चाताप करते हैं, ऐसे लोग अनाज बोकर पुण्य रूपी दाने को जला देते हैं। दान देने का सत्कार्य अत्यंत उल्लास तथा आनंद के साथ करना चाहिए, दुःखपूर्वक दिये हुए दान के लिए दान शब्द योग्य नहीं है।
हम कहते हैं कि, “अन्न जैसा मन'' यह सत्य है क्यों कि प्राणों का सर्जन अन्न द्वारा ही होता है, अत: अन्न शुद्ध होना चाहिए। मंदिर में अर्पित धन या सम्पत्ति पर यदि किसी की नजर हो तो जिंदगी मलिन बन जाती है, जीवन शौर्य विलीन हो जाता है। दान ओर भिक्षा का पैसा खाने वालों का आंतरिक सत्व नष्ट हो जाता है।
मुफ्त का लेने की इच्छा स्पृहा न हों यही सच्चा मंत्र है, दूसरों के बल पर जीना कायरता है, स्वयंबल पर जीना ही सच्ची बहादुरी है। दान देने के पश्चात् तो प्रेम उल्लास तथा आत्मिक आनंद प्रवाहित होना चाहिए। दिल की ऐसी उदारता का नाम ही सच्चा दान है।
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