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प्रत्येक व्यक्ति लोकप्रिय बनना पसंद करता है, बदनामी किसी को प्रिय नहीं। यह महत्त्वकांक्षा छोटे बालक से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक में पाई जाती है, फिर भी हम लोकप्रिय क्यों नहीं बन पाते ? कारण कि जरूरी सद्गुणों का सिद्धान्तों का हम पालन अभ्यास नहीं करते।
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लोकप्रियता
बिमार आदमी को दवाई के साथ पथ्य पालना पड़ता है, लोकप्रियता का पथ्य यह है कि किसी की निन्दा नहीं करनी चाहिए, क्यों कि एक बार आदत पड़ जाती है, फिर उसे रोकना बड़ा मुश्किल होता है। खुजली को खुजाने के लिए हाथों को रोकना कठिन होता है, इसी तरह निंदक का मुँह बन्द करना भी सरल नहीं ।
"संपूर्ण जगत मां ईश्वर एक, माणस मात्र अधूरो रे ।”
यह कथन सत्य है, दोष तो मानवमात्र में पाए जाते हैं, पर किसी के दोषों की उसके पीछे निन्दा करना पाप है । हमें किसी की निन्दा करने का अधिकार नहीं है, और जो विशिष्ट गुण समृद्ध है, उनकी निन्दा हम कैसे कर सकते हैं? बडे दुर्गुण अक्षम्य है, परंतु छोटी मोटी त्रुटियों के लिए तो जीवन की प्रतिकूलताएँ संयोग परिस्थितियां भी कारणरूप हो सकती हैं। बिना सोचे समझे किसी की टीका करना यानि कि सामने वाले के साथ अन्याय करना है ।
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