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धर्म का अधिकारी
अधिकार - यह अपने इस स्वाध्याय ग्रंथ का मौलिक तत्त्व है, इसमें मानव जीवन का रहस्य समाया हुआ है । मानव जीवन यानि जो जीवन हम जी रहे हैं वह ? या जिसका महापुरूषों ने दर्शन किया है, वह ?
इस ग्रंथ के पठन, मनन, श्रवण द्वारा हम यह जान पायेंगे कि महापुरूषों के जीवन और हमारे जीवन में क्या फर्क है ? सच्चे मानव जीवन की प्राप्ति अति दुर्लभ है। दूसरे प्राणियों के साथ जब मनुष्यकी तुलना करेंगे तभी हमें मनुष्य जीवन की सार्थकता का पता चलेगा !
व्यक्ति पैसे को ही केन्द्र बिन्दु मानकर स्वयं को सुखी मानता है, परंतु अंधे, लंगडे धनी इन्सान को यदि पूछा जाए तो शायद वे अपने आपको सुखी नहीं मानेंगे, पैसा होते हुए भी। जीवन में पाँच इन्द्रियों की पटुता के साथ साथ अहिंसक कुल मिलना अत्यंत दुर्लभ है। अहिंसक संस्कृति में पले इन्सान का हृदय खून के छीटें देखकर ही द्रवित हो जाएगा, क्योंकि उसका लालनपालन ही अनुकंपामय संस्कृति में हुआ है। भौतिकवाद में वही व्यक्ति मुग्ध होकर घूमता है, जिसे इस संस्कृति का भान नहीं ।
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मद्रास के एक न्यायाधीश के यहां गोरा सुंदर बालक जन्मा । उसके को देखकर सभी प्रसन्न होते थे, परंतु उसके नीचे के सभी अंग अपंग थे, उसका जीवन यातनामय, निरर्थक हो गया था । इसलिए पंचेन्द्रियों की
मुख
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