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२६ फर्क केवल इतना ही है। _ व्यक्ति को भ्रम है कि बाह्य वस्तुओं में आनंद समाया हुआ है, जो भ्रम को ज्ञान समझते हैं वे ज्ञान में अपूर्ण हैं। हमारे भीतर लोभ घर कर गया है, क्यों कि अस्थायी को हमने चिर स्थायी माना है।
वैसे सोना बहुत कीमती माना जाता है, परंतु हकीकत में इसकी कीमत शून्य है, क्यों कि रेगिस्तान में प्यास लगी हो तो क्या सोना प्यास बुझा सकता है? वहां तो पानी ही काम आता है। मोहम्मद गजनी के कई लोग रेगिस्तान में मर ही गये थे न। सोना उनके पास था तो भी । क्यों कि उस समय पानी नहीं था। प्यास बुझाने के लिए। सोने के लिए पलंग उपयोगी है, क्या सोने की पाट पर शांति से नींद आ सकती है भला? ___हम सबके जीवन में मोह की काली परतें इतनी मोटी चढ़ गई हैं कि ज्ञान प्रकाश के पुंजरूप आत्मा का प्रकाश बाहर ही नहीं निकल पा रहा। ऐसे पदार्थो को जिन्हें छूना भी बुरा माना जाता है, यह विवेक हमारे अंतरचक्षु के खुलने पर ही आ सकता है।
पैसे के साथ-साथ कई बार दुख, दंभ भी आ जाता है, धर्म दूर रह जाता है। जीवन में विवेक शून्यता आती है, आत्मा की अधोगति होती है। बहुत कम, कभी कभार ही पैसा, व्यक्ति को पुण्य के मार्ग पर जाने देता है। अत: इन्द्रियों की पटुता, धन संपत्ति जिन्हें मिलें हों, उनका व्यवहार विवेकयुक्त होना चाहिए, साथ-साथ सम्पूर्ण अंगोपांग भी सहायक गुण है।
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