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प्रकृति सौम्यता
प्रकृति सौम्यत्व, यह तीसरा सोपान है, इस गुण को धारण करने वाला जहाँ भी जाता है वहाँ सर्वत्र शांति और आनंद छा जाता है। प्रकृति सौम्य रखना और नि:स्वार्थी बनना यह विशिष्ट गुण है।
__ स्वभाव में कोमलता आने पर इन्सान अपनी भाषा और प्रकृति पर विजय प्राप्त कर लेता है। उसके जीवन में सौम्यता ऐसी स्वाभाविक हो जाती है कि उग्र स्वभावी इन्सान भी उसके सानिध्य में शांत हो जाता है।
क्षमाशील इन्सान हमेशा उदार व विशाल हृदयवाला होता है, इसीलिए जब संगम, भगवान के चरणों में आया, तब प्रभु ने आँखो से दो बूंद आंसू टपका कर क्षमा प्रदान की।
इन्सान अपने स्वार्थ का त्याग तभी कर सकता है, जब वह दूसरों के दु:ख को अपना मानता है। फिर उसका तप भी स्निग्ध तथा प्रेमपूर्ण बनता है, और ऐसे तप से उसमें दिव्यता प्रगट होती है।
जिसकी आँखे करूणा से नम बनी हों, वह खरा इन्सान है, जो लेता नहीं देता है, वह अपनी उदारता से दूसरों का दिल जीत लेता है, धर्म के इस अंश की प्राप्ति के लिए, हृदय को कोमल बनाना जरूरी है।
एक तरफ हम विश्व युद्ध की निंदा करते हैं और दूसरी और छोटी छोटी बातों के लिए युद्ध करते हैं। हमें याद रखना चाहिए की पत्थर का छोटा कंकर भी तालाब में डालने से अंदर लहर पैदा करता है, वह तालाब
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