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धर्म का आराधक
इस अथाह भवसागर में मनुष्य भव प्राप्ति अति दुर्लभ एवं कठिन है। जीवन साधनामय रहा तो मनुष्य भव सार्थक।
बालक के जन्म के बाद सर्वप्रथम जन्मपत्री बनवाते हैं, उसका आयुष्य देखा जाता है, आयुष्य होगा तो ही संसार में कीर्ति, धन इत्यादि की प्राप्ति हो सकेगी।
महान तत्त्व चिंतक भी इस भव रूपी महासागार की विशालता, गहनता का पार नहीं पा सके।
जिस तरह जन्मांध व्यक्ति को प्रकाश की कल्पना नहीं होती, वैसे ही अज्ञानी मानव जन्म का महत्त्व क्या समझे? इसका महत्त्व ज्ञानी पुरूष ही समझ सकते है, पशुओं का जीवन कितना यातनामय है, कौन वर्णन कर सकता है ? मनुष्य को थोडा भी कष्ट आए तो लम्बा चौडा वर्णन करता है, मानव शिकायत कर सकता है, अपना दु:ख दूर कर सकता है उसके पास साधन है, सिद्धि है। पशु मूक रहकर सारे कष्ट झेलते हैं। हमें यदि अपने जीवन का दर्शन करना हों, प्राप्य सुखों की कीमत आंकनी हों तो हमें अपने से छोटे लोगों, यहाँ तक कि पशुओं के जीवन के साथ स्वयं के सुख की । तुलना करनी चाहिए तो हमें पत्ता चलेगा की हम कितने सुखी हैं ?
वैसे भी इन्सान स्वभावतः सुखान्वेषी है। पर अज्ञानता के कारण वह
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