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पूर्व भूमिका
आज के युग 'की यह मांग है कि मानव केवल मानवजीवी ही बनकर न रह जाए, अपनी चेतना को विश्व चेतना बनाकर धर्मजीवी बने। इस मंगलमय दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर इस प्रवचन माला में जीवन की आचारसंहिता पर विचार करेंगे।
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इसके लिए हमने " धर्म रत्न प्रकरण" नामक ग्रंथ पसंद किया है। आचार्य श्री देवेन्द्रसुरिजी द्वारा रचित यह ग्रंथ अद्भुत है, जो हमारे जीवन में प्रेरणा स्त्रोत बन सकता है।
इस ग्रंथ में धर्मी व्यक्ति के गुणों का वर्णन है, वरना धर्मी कहलाना एक बात है, यह सरल है, परंतु धर्मी बनना कठिन है। हमें इस ग्रंथ के अभ्यास द्वारा धर्माचरण को सिद्ध करना है। लेखक सर्व प्रथम अभिमान का त्याग करके प्रभु को नमन करते है, जिससे ऐसे ग्रंथ का श्रवण करके श्रोता तथा स्वयं दोनो भव का पार पा सके ।
ऐसे महान सृजन के पीछे इन्सान में नम्रता का गुण होना अत्यावश्यक है। लेखक ने त्यागी, बैरागी श्री महावीरप्रभु को वंदन किया है, हम लेखक को वंदन करते है, जिन्होंने विनय गुण का मंत्र हमें सिखाया है।
नम्रता ओर विनय रहित मानव का जीवन कभी सुगंधित नहीं बन सकता, मोम जैसा नर्म हृदय बनाने के लिए, घर घर में माता-पिता, कुटुम्बीजन, मित्रों के प्रति नम्रता का गुण अपनाना जरूरी है ।
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