Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन धर्म का उद्गम और विकास
भागवत पुराण में यह भी कहा गया है कि ऋषभदेव के इस चरित्र को सुनकर कोंक, बैंक व कुटक का राजा अर्हन् कलयुग में अपनी इच्छा से उसी धर्म का संप्रवर्तन करेगा, इत्यादि । इस वर्णन से इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता कि भागवत पुराण का तात्पर्य जैन पुराणों के ऋषभ तीर्थंकर से ही है, और अर्हन् राजा द्वारा प्रवर्तित धर्म का अभिप्राय जैनधर्म से । अतः यह आवश्यक हो जाता है कि भागवत पुराण तथा वैदिक परम्परा के अन्य प्राचीन ग्रन्थों में ऋषभदेव के संबंध की बातों की कुछ गहराई से जांच पड़ताल का जाय ।
भागवतपुराण में कहा गया है कि
"बहिषि तस्मिन्नेव विष्णुदत्त भगवान् परमर्षिभिः प्रसादितो नाभः प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मेरुदेव्यां धर्मान् दर्शयितुकामो वातरशनानां श्रमणानाम् ऊर्ध्वमन्थिनां शुक्लया तन्वावततार।" (भा. पु. ५, ३,२०)
___ "यज्ञ में परम ऋषियों द्वारा प्रसन्न किये जाने पर, हे विष्णुदत्त, पारीक्षित, स्वयं श्री भगवान् (विष्णु) महाराज नाभि का प्रिय करने के लिये उनके रनिवास में महारानी मेरुदेवी के गर्भ में आए। उन्होंने इस पवित्र शरीर का अवतार वातरशना श्रमण ऋषियों के धर्मों को प्रकट करने की इच्छा से ग्रहण किया।"
भागवत पुराण के इस कथन में दो बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं, क्योंकि उनका भगवान् ऋषभदेव के भारतीय संस्कृति में स्थान तथा उनकी प्राचीनता और साहित्यिक परंपरा से बड़ा घनिष्ठ और महत्वपूर्ण संबंध है । एक तो यह की ऋषभ देव की मान्यता और पूज्यता के संबंध में जैन और हिन्दूओं के बीच कोई मतभेद नहीं है। जैसे वे जैनियों के आदि तीर्थंकर हैं, उसी प्रकार वे हिन्दुओं के लिये साक्षात् भगवान विष्णु के अवतार हैं। उनके ईश्वरावतार होने की मान्यता प्राचीनकाल में इतनी बद्धमूल हो गयी थी कि शिवमहापुराण में भी उन्हें शिव के अट्ठाइस योगावतारों में गिनाया गया है (शिवमहापुराण, ७,२,९)। दूसरी बात यह है कि प्राचीनता में यह अवतार राम और कृष्ण के अवतारों से भी पूर्व का माना गया है। इस अवतार का जो हेतु भागवत पुराण में बतलाया गया है उससे श्रमण धर्म की परम्परा भारतीय साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद से निःस्सन्देह रूप से जुड़ जाती है। ऋषभावतार का हेतु वातरशना श्रमण ऋषियों के धर्म को प्रकट करना बतलाया गया है। भागवत पुराण में यह भी कहा गया है कि
'अयमवतारो रजसोपप्लुत कैवल्योपशिक्षणार्थः' (भा. पु. ५, ६, १२) अर्थात भगवान् का यह अवतार रजोगुण से भरे हुए लोगों को कैवल्य
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