Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
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ईसवीसनका अन्तर करीब ७८ वर्षका है, क्योंकि कभी कभी ७९ जोड़नेसे ईसवीसन आता है।
भाषा । नहपानकी कन्या दक्षमित्रा और उसके पति उषवदात और पुत्र मित्रदेवके लेख तो प्राकृतमें हैं। केवल उषवदातके बिना संवतके एक लेखका कुछ भाग संस्कृतमें है । नहपानके मंत्री अयमका लेख भी प्राकृतमें है । परन्तु रुद्रदामा प्रथम, रुद्रसिंह प्रथम, और रुद्रसेन प्रथमके लेख संस्कृतमें हैं । तथा भूमकसे लेकर आजतक जितने क्षत्रपोंके सिक्के मिले हैं उन परके एकाध लेखको छोड़कर बाकी सबकी भाषा प्राकृतमिश्रित संस्कृत है । इनमें बहुधा षष्ठी विभक्तिके 'स्य' की जगह 'स' होता है। किसी किसी राजाके दो तरहके सिक्के भी मिलते हैं। इनमेंसे एक प्रकारके सिक्कोंमें तो षष्ठी विभक्तिका द्योतक 'स्य ' या 'स' लिखा रहता है और दूसरोंमें समस्त पद करके विभक्तिके चिह्नका लोप किया हुआ होता है । यथा
पहले प्रकारके-रुद्रसेनस्य पुत्रस्य या रुद्रसेनस पुत्रस । दूसरे प्रकारके-रुद्रसेनपुत्रस्य ।
इन सिक्कोंमें एक विलक्षणता यह भी है कि, 'राज्ञो क्षत्रपस्य' पदमें कवर्गके सम्मुख होने पर भी सन्धि-नियमके विरुद्ध राज्ञः के विसर्गको ओकारका रूप दिया हुआ होता है । इनका अलग अलग खुलासा हाल प्रत्येक राजाके वर्णनमें मिलेगा।
लिपि । क्षत्रपोंके सिक्कों और लेखों आदिके अक्षर ब्राह्मी लिपिके हैं । इसीका परिवर्तित रूप आजकलकी नागरी लिपि समझी जाती है । परन्तु भूमक, नहपान और चष्टनके सिक्कों पर ब्राह्मी और खरोष्ठी दोनों लिपियोंके लेख हैं और बादके राजाओंके सिक्कों पर केवल ब्राह्मी लिपिके
(१) कुप्वोः क : पौ च ( अ० ८ । ३।३७)
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