Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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पाल-वंश।
इससे भी पूर्वोक्त ताम्रपत्रमें कही हुई बात सिद्ध होती है । सम्भव है, मगधके गुप्त-वंशियोंका राज्य नष्ट होनेपर अनेक छोटे छोटे राज्य हो गये हों और उनके आपसके संघर्षसे प्रजाको बहुत कष्ट होने लगा हो, इसीसे दुःखित होकर गोपालको वहाँवालोंने अपना राजा बना लिया हो
और गोपालने उन छोटे छोटे दुष्ट राजाओंका दमन करके प्रजाकी रक्षा की हो। . तारानाथके लेखस पता लगता है कि-" गोपालने पहले पहल अपना राज्य बङ्गालमें स्थापित किया; तदनन्तर मगध ( बिहार ) पर अधिकार किया । इसने ४५ वर्षतक राज्य किया ।" ।
तवारीख-ए-फरिश्ता और आईन-ए-अकबरीमें इसका नाम भूपाल लिखा मिलता है । यह भी गोपालका ही पर्यायवाची है । क्योंकि 'गो' और 'भू' दोनों ही पृथ्वीके नाम हैं । फरिश्ता लिखता है कि इसने ५५ वर्षतक राज्य किया। __ इसकी रानीका नाम देहदेवी था । वह भद्र-जातिके अथवा भद्रदेशके राजाकी कन्या थी। उसके दो पुत्र हुए-धर्मपाल और वाक्पाल ।
गोपालका एक लेखे नालन्दमें मिली हुई एक मूर्तिके नीचे खुदा हुआ है। उसमें वह “परमभट्टारक महाराजाधिराज, परमेश्वर" लिखा हुआ है । इससे जाना जाता है कि वह स्वतन्त्र राजा था । उसके समयका एक और लेख बुद्ध गयामें मिली हुई एक मूर्ति पर खुदा हुआ है।
४-धर्मपाल। यह गोपालका पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था। पालवंशियोंमें यह बड़ा प्रतापी हुआ। भागलपुरके ताम्रपत्रसे प्रकट होता है कि इसने
(१) J. B. A. S., Vol. 63, p. 53. (२) A. S. J., Vol. I and, III, p. 120, (३) सर ए. कनिंगहाम-कृत महाबोधि । (४) Ind. Ant, Vol. XV, p. 305, and Vol. XX, p. 187.
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