Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 315
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौहान-वंश । बंदी हो जानेका अत्यधिक खेद हुआ और इसने स्वामीको इस अवस्थामें छोड़ जाना अपने गौड़ वंशके लिये कलङ्करूप समझा, इसलिये नगर (दिल्ली) को घेरकर यह पूरे एक मास तक लड़ता रहा । एक दिन किसीने बादशाहसे निवेदन किया कि पृथ्वीराजने आपको युद्धमें बन्दी बनाकर अनेक बार छोड़ दिया था । अतः आपको भी चाहिए कि कमसे कम एक बार तो उसे भी छोड़ दें। इस पर बादशाह बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने कहा कि यदि तुम्हारे जैसे मन्त्री हों तो राज्य ही नष्ट हो जाय । अन्तमें सुलतानने पृथ्वीराजको किलेमें भेज दिया । वहीं पर उसका देहान्त हुआ । जब यह खबर उदयराजको मिली तब उसने भी युद्धमें लड़कर वीरगति प्राप्त की, तथा पृथ्वीराजके डोटे भाई हरिराजने अपने बड़े भाईका क्रिया-कर्म किया।" जामिउल हिकायतमें लिखा है: " जब मुहम्मदसाम ( शहाबुद्दीन गोरी) दूसरी बार कोला ( पृथ्वी. गज) से लड़ने चला तब उसे खबर मिली कि शत्रुने हाथियों को अलग . एक पंक्तिमें खड़े किये हैं । इससे युद्ध समय घोड़े चमक जायँगे । यह खबर सुन उसने अपने सैनिकोंको आज्ञा दी कि जिस समय हमारी मेना पृथ्वीराजकी सेनाके पासके पड़ाव पर पहुँचे उस समयसे प्रत्येक खेमेके सामने रातभर खूब आग जलाई जाय ताकि शत्रुओंको हमारी गतिविधिका पता न लगे और वे समझें कि हमारा पड़ाव उसी स्थान पर है । इस प्रकार अपनी सेनाके एक भागको समझाकर वह अपनी सेनाके दूसरे भाग सहित दूसरी तरफको चल पड़ा । परन्तु उधर हिन्दू सेनाने दूर खेमों में आग जलती देख समझ लिया कि बादशाहका पड़ाव उहीं है और उधर रातभर चलकर बादशाह पृथ्वीराजकी सेनाके पिछले भागके पास आ पहुँचा । तथा प्रातःकाल होते ही इसकी सेनाने हमलाकर पृथ्वीराजकी सेनाके इस भागको काटना शुरू किया। जब वह २५५ For Private and Personal Use Only

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