Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
सेना पीछे हटने लगी तब पृथ्वीराजने अपनी सेनाका रुख इस तरफ किराना चाहा । परन्तु शीघ्रतामें उसकी व्यूह-रचना बिगड़ गई और हाथी भड़क गये । अन्तमें पृथ्वीराज हराया जाकर कैद कर लिया गया।"
ताजुलम आसिरमें लिखा है:__ “हिजरी सन् ५८७ (वि० सं० १२४८-ई० स० ११९१) में सुलतान ( शहाबुद्दीन ) ने गजनीसे हिन्दुस्तान पर चढ़ाई की और लाहोर पहुँच अपने सर्दार किवामुलमुल्क रूहुद्दीन हमजाको अजमेरके राजाके पास भेजा, तथा उससे कहलवाया कि 'तुम बिना लड़े ही सुलतानकी अधीनता स्वीकार कर मुसलमान हो जाओ' । रूहुद्दीनने अजमेर पहुँच सब वृत्तान्त कह सुनाया । परन्तु वहाँके राजाने गर्वसे इसकी कुछ भी परवाह न की। इस पर सुलतानने अजमेरकी तरफ कूच किया। जब यह खबर प्रतापी राजा कोला ( पृथ्वीराज ) को मिली तब वह भी अपनी असंख्य सेना लेकर सामना करनेको चला । परन्तु युद्धमें मुसलमानोंकी फतह हुई और पृथ्वीराज कैद कर लिया गया । इस युद्ध में करीब एक लाख हिन्दू मारे गये । इस विजयके बाद सुलतानने अजमेर पहुँच वहाँके मन्दिरोंको तुड़वाया और उनकी जगह मसजिदें व मदरसे बनवाये । अजमेरका राजा; जो कि सजासे बचकर रिहाई हासिल कर चुका था, मुसलमानोंसे नफ़रत रखता था । जब उसके साजिश करनेका हाल बादशाहको मालूम हुआ तब उसकी आज्ञासे राजाका सिर काट दिया गया । अन्तमें अजमेरका राज रायपिथोरा (पृथ्वीराज ) के पुत्रको सौंप सुलतान दिल्लीकी तरफ चला गया। वहाँके राजाने उसकी अधीनता स्वीकार कर खिराज देनेकी प्रतिज्ञा की । वहाँसे बादशाह गजनीको लौट गया। परन्तु अपनी सेना इंद्रपतः ( इंद्रप्रस्थ ) में छोड़ गयो ।" (१) Eliot's, History of India, Vol. II, P. 200 (२) Eliot's, History of India, Vol. II, P. 212-216.
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