Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 375
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जालोरके सोनगरा चौहान । थी । जब राजा सीतलदेवने देखा कि अब अधिक दिनतक युद्ध करना कठिन है, तब उसने सोनेकी बनी हुई अपनी मूर्ति जिसके गलेमें अधीनतासूचक जंजीर पड़ी थी और सौ हाथी आदि भेटमें भेजकर मेल करना चाहा । अलाउद्दीनने उक्त वस्तुयें स्वीकार कर कहलाया कि जबतक तुम स्वयं आकर वश्यता स्वीकार न करोगे तबतक कुछ न होगा । यह सुन राजा स्वयं हाजिर हुआ और उक्त किला सुलतान के अधीन कर दिया । सुलतानने उक्त किलेको लूटने के बाद खाली किला सीतलदेवको ही सौंप दिया। परन्तु उसके राज्यका सारा प्रदेश अपने सर्दाको दे दिया । ” यद्यपि उक्त तवारीखके लेखसे सीतलदेवके वंशका पता नहीं लगता है, तथापि मूता नैणसीकी ख्यातमें लिखा है कि वि० सं० १३६४ में बादशाह अलाउद्दीनने सिवानेके किलेपर कब्जा कर लिया और चौहान सीतल मारा गया । मृता नैणसी की ख्यातमें यह भी लिखा है कि, कीतू ( कीर्तिपाल ) ने परमार कुंतपालसे जालोर और परमार वीरनारायण से सिवाना लिया था । अतः सिवानेका राजा सीतलदेव चौहान कीतू ( कीर्तिपाल ) का ही वंशज होगा । ७- मालदेव । मता नैणसीने अपनी ख्यातमें लिखा है कि, "जिस समय अलाउद्दीनने जालोर के किले पर आक्रमण किया, उस समय कान्हड़देवने अपने वंशको कायम रखनेके लिये अपने भाई मालवदेवको पहले से ही किलेसे बाहर भेज दिया था । कुछ समय तक यह इधर उधर लूटमार करता रहा; परन्तु अन्तमें बादशाह के पास दिल्लीमें जा रहा । बादशाहने प्रसन्न होकर रावल रत्नसिंहसे छीना हुआ चित्तौड़का किला और उसके आसपासका प्रदेश मालदेवको सौंप दिया। सात वर्षतक उक्त किला और प्रदेश इसके ३११ For Private and Personal Use Only

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