Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 351
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडोल और जालोरके चौहान । हथंडी लेखके ११ वें श्लोकसे विदित होता है कि, जिस समय ( चौलुक्य) दुर्लभराजकी सेनाने महेन्द्रको सताया था उस समय राष्ट्रकूट राजा धवलने इसकी सहायता की थी । प्रोफेसर डी० आर० भाण्डारकरने इस दुर्लभराजको विग्रहराजका भाई और उत्तराधिकारी लिखा है। पर वास्तव में यह चामुण्डराजका पुत्र और वल्लभराजका छोटा भाई व उत्तराधिकारी था । दयाश्रय काव्यमें लिखा है: << मारवाड़-नाडोलके राजा महेन्द्रने अपनी बहन दुर्लभदेवीके स्वयंरमें गुजरात के चौलुक्य राजा दुर्लभराजको भी निमन्त्रित किया था । इसपर वह अपने छोटे भाई नागराजसहित स्वयंवर में आया । यद्यपि वहाँपर अंग काशी आदि अनेक देशोंके राजा एकत्रित हुए थे, तथापि दुर्लभदेवीने गुजरात के राजा दुर्लभराजको ही वरमाला पहनाई। अतः महेन्द्र ने अपनी दूसरी बहन लक्ष्मीका विवाह दुर्लभके छोटे भाई नागके साथ कर दिया । "" सम्भव है, कविने प्राचीन कवियोंकी शैलीका अनुसरण करके ही स्वयंवर में अनेक राजाओंके एकत्रित होनेकी कल्पना की होगी । ६ - अणहिल्ल । यह महेन्द्रका पुत्र और उत्तराधिकारी था । यद्यपि पूर्व लेखानुसार सुंधा पहाड़ी के लेखमें महीन्दुराज और अण'हेल्लके बीच में अश्वपाल और अहिलके नाम दिये हैं, तथापि रायबहादुर पं० गौरीशंकर ओझाने नाडोल के उपर्युक्त ताम्रपत्र के आधारपर महेन्द्र के बाद अल्लिका ही होना माना है । संघाके लेखसे प्रकट होता है "अहिलने गुजरातके राजा भीमकी मेनाको हराया । " आगे चलकर उसी लेखमें लिखा है कि “ उसके बाद ( १ ) Ep. Ind., Vol. XI, p. 68. २८७ For Private and Personal Use Only

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