Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 370
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश तरफ होनेको बाध्य किया।” इनमेंका उदयसिंह उपर्युक्त चौहान राजा उदयसिंह ही होगा। संधाके लेखमें आगे चलकर इसे 'सिंधुराजान्तक' लिखा है । अतः या तो यह शब्द सिन्धदेशके राजाके लिये लिखा गया होगा या यह उक्त नामका राजा होगा, जिसके पुत्र शङ्कको बघेल लवणप्रसादके राज्यसमय खंभातके पास वस्तुपालने हराया था । इसके समयका वि० सं० १३०६ ( ई० स० १२४९) का एक लेख भीनमालसे मिला है। रामचंद्रकृत निर्भयभीमव्यायोगकी एक हस्तलिखित प्रतिमें लिखा है: " संवत् १३०६ वर्ष भाद्रवावदि ६ रवावयेह श्रीमहाराजकुलश्री उदयसिंहदेवकल्याणविजयराज्ये... ।” इससे स्पष्ट है कि उपर्युक्त उदयसिंहसे भी चौहान उदयसिंहका ही तात्पर्य है। जिनदत्तने अपने विवेकविलासके अन्तमें लिखा है कि उसने उक्त ग्रन्थकी रचना जाबालिपुर ( जालोर ) के राजा उदयसिंहके समय की थी। ___ उदयसिंहके एक तीसरा पुत्र और भी था । इसका नाम वाहड़देव था। उदयसिंहके एक कन्या भी थी। इसका विवाह धोलका (गुजरातमें) के राजा वीरधवलके बड़े पुत्र वीरमसे हुआ था । राजशेखररचित प्रबन्धचिन्तामणि और हर्षगणिकृत वस्तुपाल-चरित्रमें लिखा है कि वस्तुपालने वीरमके छोटे भाई वीसलको गद्दीपर बिठला दिया । इसपर (१) Dr. Peterson's Firat report ( 1882-83), App. p. 81. (२) Dr. Bhandarkar's Search for Sanskrit Mss tor 188384, p.156. (३) G. B. P. Vol. 1, p. 482, For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386