Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 358
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश समान उपाधिवाले दो राजा कैसे राज्य करते थे । प्रो० डी० आर० भाण्डारकरका अनुमान है कि सम्भवतः कुछ समय राज्य करनेके बाद अश्वराज और कटुकराजसे अणहिलवाड़ेका राजा सिद्धराज जयसिंह अप्रसन्न हो गया और इनके स्थानपर उसने इनके कुटुम्बी रायपालको नियत कर दिया होगा । इस रायपालकी स्त्रीका नाम मानलदेवी था । इसके दो पुत्र हुए-रुद्रपाल और अमृतपाल । उपर्युक्त प्रोफेसर भाण्डारकरको ४ लेख मिले हैं । ये वैजाक ( वंजल्लदेव ) के हैं । यह कुमारपालका दंडनायक और नाडोलका अधिकारी था। . इससे प्रकट होता है कि जिस समय वि० सं० १२०७ के निकट कुमारपालने सांभरपर हमला किया और अर्णोराजको हराया, उस समय शायद रायपाल जिसको कुमारपालने नाडोलका राजा नियत किया था, अपने वंशकी प्रधानशाखाके राज्यकी रक्षाके लिये शाकंभरीके चौहान राजाकी तरफ हो गया होगा । तथा इसीसे कुमारपालने अश्वराज और कटुकराजकी तरह उसको भी राज्यसे दूर कर दिया होगा । इसके प्रमाणस्वरूप उपर्युक्त ४ लेख हैं। इनमें पहला वि० सं० १२१० का बाली परगनेके भटूंड गाँवसे मिला है, दूसरा वि० सं० १२१३ का सेवाडीके महावीरके मन्दिरमें लगा है, तीसरा, वि० सं० १२१३ का घाणेरावमें है और चौथा वि० सं० १२१६ का बालीके बहुगुणमाताके मन्दिरमें लगा है । इनसे प्रकट होता है कि वि० सं० १२१० से १२१६ तक नाडोलके आसपास कुमारपालके दंडनायक विज्जलका अधिकार था। वि० सं० १२०९ का एक लेख पाली ( मारवाड़ ) के सोमेश्वरके मन्दिरमें लगा है । इसमें भी कुमारपालका उल्लेख है। २९४ For Private and Personal Use Only

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