Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 357
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडोल और जालोरके चौहान । __ " [ समस्त ] राजावलीविराजितमहाराजाधिराजश्रीज [य] सिंहदेषकल्याणविजयराज्ये तत्पा [द] पद्मोपजीवि [नि महा ] राजश्रीआश्वके " इससे प्रकट होता है कि इस समयके आसपाससे नाडोलके चौहानोंने सोलंकियोंकी अधीनता पूर्णतया स्वीकार कर ली थी। क्यों कि यद्यपि पिछले राजाओंके समयसे ही मारवाड़के चौहान अणहिलवाड़ेके सोलंकियोंसे कभी लड़ते और कभी उनकी सहायता करते आये थे, तथापि लेखोंमें पहले पहले उनकी अधीनता इसी उपर्युक्त लेखमें स्वीकार की गई है। ___ उपर्युक्त लेखोंमेंसे पहला और दूसरा तो सेवाडीसे मिला है, तथा तीसरा बालीसे। इसकी मृत्यु वि० सं० १२०० में हुई होगी; क्यों कि उसी वर्षका इसके पुत्रका भी लेख मिला है। १३-कटुकराज । यह अश्वराजका पुत्र था। इसके समयका संवत् ११ का एक लेख मिला है। कटुकराजके पिता अश्वराजने पूर्णतया चौलुक्योंकी अधीनता स्वीकार कर ली थी । अत: यह भी सिद्धराज जयसिंहका सामन्त था । इस लिये यदि उक्त संवत ३१ को 'सिंह संवत् ' मान लिया जाय, तो उस समय वि० सं० १२०० होगा। हम पहले रायपालके वर्णनमें दिखला चुके हैं कि उसके लेख वि० सं० ११८९ ( ई० स० ११३२ ) से वि० सं० १२०२ ( ई० स० ११४५) तकके मिले हैं और अश्वराज और उसके पुत्र कटुराजके वि० सं० ११६७ ( ई० सं० १११० ) से वि० सं० १२०० ( ई० स० ११४३ ) तकके मिले हैं । इन लेखोंको देखकर शंका उत्पन्न होती है कि एक ही समय एक ही स्थानपर एक ही वंशके For Private and Personal Use Only

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