Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 359
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडोल और जालोरके चौहान । १४ - आल्हणदेव । यह अभ्वराजका पुत्र और कटुकराजका छोटा भाई था । सुंधा माताके मन्दिरके द्वितीय शिला लेख में लिखा है कि इसने नाडोल में महादेवका मन्दिर बनवाया था और हर समय गुर्जराधिपतिको इसकी सहायता की आवश्यकता पड़ती थी । तथा इसकी सेनाने सौराष्ट्रपर चढ़ाई की थी । वि० सं० १२०९ माघ वदि १४ शनिवारका एक लेख किराडूसे मिला है । इसमें लिखा है कि " शाकंभरी ( सांभर ) के विजेता कुमारपालके विजयराज्य में स्वामीकी कृपासे प्राप्त किया है किराडू ( किराटकूप ), राड़धड़ा ( लाटहृद ) और शिव ( शिवा ) का राज्य जिसने, ऐसा राजा श्रीआल्हणदेव अपने राज्यमं प्रत्येक पक्षकी अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी के दिन जीवहिंसा न करनेकी आज्ञा देता है । " उपर्युक्त लेखोंसे प्रकट होता है कि यद्यपि चौलुक्य कुमारपाल इसके पूर्वाधिकारियोंसें अप्रसन्न हो गया था और उनको हटाकर किराडूपर उसने अपने इंडनायक विज्जलदेवको भेज दिया था, तथापि उसने आल्हणदेव से प्रसन्न होकर उसे उसके वंशपरम्परागत राज्यका अधिकारी बना दिया था । प्रबन्ध - चिन्तामणि में लिखा है कि कुमारपालने अपने सेनापति उदयनको सौराष्ट्र ( सोरठ - काठियावाड़) के मेहर ( मेर ) राजा सौसर पर हमला करने को भेजा था । इस युद्ध में कुमारपालका उक्त सेनापति मारा गया और फौजको हारकर लौटना पड़ा । कुमारपाल - चरितसे प्रकट होता है कि अन्तमें कुमारपालने उपर्युक्त समर ( सौसर ) को हराकर उसकी जगह उसके पुत्रको राज्यका स्वामी बनाया । सम्भवतः इस युद्ध में आल्हणने ही खास तौरपर पराक्रम प्रकाशित किया होगा । इसीसे किराडूके लेख में इसे सौराष्ट्रका विजेता २९५ For Private and Personal Use Only

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