Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 338
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश तारीख फरिश्तामें लिखा है:-- (( हि० ० स० ६९९ ( वि० सं० १३५७ - ई० स० १३०० ) में अलाउद्दीनने अपने भाई उलगखांको और मन्त्री नसरतखांको रणथंभोर पर आक्रमण करने को भेजा । नसरतखां किलेके पास मंजनीकसे चलाये हुए पत्थर के लगने से मारा गया । हम्मीर देवने भी २००००० फौजके साथ किलेसे बाहर आ तुमुल युद्ध किया । इसपर उलगखांको बड़ी भार हानि उठाकर लौटना पड़ा । जब यह खबर सुलतानको मिली तब वह स्वयं रणथंभोर पर चढ़ आया । हिन्दू भी बड़ी वीरता से लड़ने लगे ! प्रतिदिन यवन - सेनाका संहार होने लगा । इसी प्रकार लड़ते हुए एक वर्ष होने पर भी जब सुलतानको विजयकी कुछ भी आशा नहीं दिखाई दी, तब उसने रेत से भरे बोरोंको तले ऊपर रखवा कर किलेपर चढ़ने के लिये जीने बनवाये और उसी रास्तेसे घुस मुसलमानोंने किलेपर कब्जा कर लिया । हम्मीर सकुटुम्ब मारा गया । किलेमें पहुँचनेपर सुलतानने मुगलसर्दार अमीर महंमदशाहको घायल हालत में पड़ा पाया । यह सर्दार बादशाहसे बागी हो हम्मीरदेव के पास आरहा था और इसने किलेकी रक्षामें अपने शरणदाताको अच्छी सहायता दी थी। बादशाहने उससे पूछा कि यदि तुम्हारे घावोंका इलाज करवाया जाय तो तुम कितना एहसान मानोगे । यह सुन यवन वीरने उत्तर दिया कि मैं तुम्हें मार तुम्हारे स्थानपर हम्मीरके पुत्रको राज्यका स्वामी बनानेकी कोशिश करूँगा । यह सुन सुलतान बहुत क्रुद्ध हुआ और महंमदशाहको हाथी के पैरसे कुचलवा डाला । इस युद्ध में हम्मीरका प्रधान रत्नमल सुलतानसे मिल गया था । परन्तु किला फतह हो जाने पर सुलतानने मित्रों सहित उसे कत्ल करनेकी आज्ञा दी और कहा कि जो आदमी अपने असली स्वामीका ही खैरख्वाह न हुआ वह हमारा कैसे होगा । इसके २७६ For Private and Personal Use Only

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