Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 337
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणथम्भोरके चौहान। अमीर खुसरो अपने रचे हुए 'आशिक ' नामक काव्यमें लिखता है “ रणथंभोरका राजा पिथुराय ( हम्मीर ) पिथोरा ( पृथ्वीराज ) का वंशज था । उसके पास १०००० अरबी घोड़े और हाथियोंके सिवाय सिपाही आदि भी बहुत थे । सुलतान अलाउद्दीनने उसके किलेको घेर कर मंजनीकोंसे पत्थर बरसाने आरम्भ किये । इससे किलेके मोरचे चूर चूर होकर गिरने लगे और किला पत्थरोंसे भर गया । इसी प्रकार एक महीनेके घोर युद्धके बाद किलेपर अलाउद्दीनका अधिकार हो गया और उसने उसे उलगखांके अधीन कर दियाँ ।” ऊपर जो किलेका एक महीनेमें फतह होना लिखा है, सो इसका नात्पर्य शायद सुलतानके स्वयं वहाँ पहुचनेके एक महीने बादसे होगा। फीरोजशाह तुगलकके समय जियाउद्दीन बर्नीने तारीख फीरोजशाही नामक पुस्तक लिखी थी। उसका रचनाकाल ई० स० १३५७ है। उसमें लिखा है: “ दिल्लीके रायपिथोराके पोते हम्मीरदेवसे रणथंभोरका किला छीननेका विचार कर अलाउद्दीनने उलगखां ओर नसरतखांको उसपर चढ़ाई करनेकी आज्ञा दी। उन्होंने जाकर उस किलेको घेर लिया। एक दिन नसरतखां किलेके पास पुश्ता बनवा रहा था। ऐसे समय किलेके अन्दरसे मगरबी द्वारा चलाया हुआ पत्थर उसके आ लगा। इसकी चोटसे दो ही तीन दिनमें वह मर गया । जब यह समाचार सुलतानने सुना तब स्वयं रणथंभोर पहुँचा । अन्तमें बड़ी ही कठिनतासे भारी खून-खराबीके बाद सुलतानने किले पर अधिकार किया और हम्मीर देवको तथा गुजरातसे बागी होकर हम्मीरकी शरणमें रहनेवाले नवीन बनाये हुए मुसलपानोंको मार डाला। उलगखा यहाँका अधिकारी बनाया गया।" (१) E. II. I., Vol. III, P. 549. (२) E. L. I., Vol. III., P. 171-170. .२७५ For Private and Personal Use Only

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