Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
इसकी रानीका नाम सुहवदेवी था । इसीने सुहवेश्वरका मन्दिर बनवाया था, जो रूठी रानीके मन्दिरके नामसे प्रसिद्ध है । इसी मन्दिरके पासके श्वेतपाषाणके महल भी रूठी रानीके महल कहलाते हैं । इसने धोड़ गाँवके नित्यप्रमोदितदेवके मन्दिरके लिये भी कई खेत दिये थे। इस लिये यह मन्दिर भी रूठी रानीके मन्दिरके नामसे प्रसिद्ध है।
पृथ्वीराजने मुसलमानोंको भी युद्धमें परास्त किया था और हांसीके किलेमें एक भवन बनवाया था। यह वि० सं० १८५८ ( ई० स० १८०१ ) में नष्ट कर दिया गया ।
इसके समयके चार लेख मिले हैं। पहला वि० सं० १२२४ ( ई० स० ११६७ ) की माघ शुक्ला ७ का है। दूसरी और तीसरा वि० सं० ११२२ (ई० स० ११६८) का है तथा चौथा वि० सं० १२२६ (ई० स० ११६९ ) का है। __ इनमेंका वि० सं० १२२४ का लेख कर्नल टौड साहबने भारतके राज-प्रतिनिधि लार्ड हैस्टिंग्जको भेट किया था । परन्तु अब इसका कुछ भी पता नहीं चलता। टौड साहबने इसे शहाबुद्दीन गोरीके शत्रु प्रसिद्ध चौहानराजा पृथ्वीराजका मान लिया था। परन्तु उस समय सोमेश्वरके पुत्र पृथ्वीराजका होना बिलकुल असम्भव ही है। इसके मामाका नाम कर्ण लिखा मिलता है।
३०-सोमेश्वर । पृथ्वीराज-द्वितीयके बाद उसके मन्त्रियोंने सोमेश्वरको उसका उत्तधिकारी बनाया। यह अर्णोराजका तृतीय पुत्र और पृथ्वीराज द्वितीयका (१) धोड़गाँवके रूठी रानीके मन्दिरके स्तम्भपर खुदा है । (२) मेवाड़में सुहवेश्वरके मन्दिर की दीवारपर खुदा है। (३) मेनालमें भावब्रह्मके मटके एक स्तम्भपर खुदा है।
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