Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
उसके दो ताम्रपत्र मिले हैं--पहली उसके राज्यके तीसरे वर्षका दूसरा चौदहवें वर्षका । अबुलफज़लने, इसकी जगह, सदासेनका १८ वर्ष राज्य करना लिखा है।
९-दनौजमाधव । अबुलफज़लने सदासेनके पीछे नोजाका राजा होना लिखा है। घरकोंकी कारिकाओंमें केशवसेनके बाद दनुजमाधव ( दनुजमर्दन या दनौजा माधव ) का नाम दिया है । तारीख फीरोजशाहीमें इमीका नाम दनुजराय लिखा है। ये तीनों नाम सम्भवतः एक ही पुरुषके हैं।
ऊपर लिखा जा चुका है कि अबुलफज़लने इसको नोजा लिखा है । अतएव या तो अबुलफज़लने ही इसमें गलती की होगी या उसकी रचित आईने अकबरीके अनुवादकने ।
घटकोंकी कारिकाओंसे इसका प्रतापी होना सिद्ध होता है। उनमें यह भी लिखा है कि लक्ष्मणसेनसे सम्मानित बहुतसे ब्राह्मण इसके पास आये थे, जिनका द्रव्यादिसे बहुत कुछ सन्मान इसने किया था।
इसने कायस्थोंकी कुलीनता बनी रखनेके लिए, घटक आदिक नियुक्त करके, उत्तम प्रबन्ध किया था। विक्रमपुरको छोड़कर चन्द्रद्वीप (बाकला) में इसने अपनी राजधानी कायम की । इसके विक्रमपुर छोड़नेका कारण यवनोंका भय ही मालम होता है।
'लखनौतीका हाकिम मुगीसुद्दीन तुगरल, दिल्लीश्वरसे बगावत करके, वहाँका स्वतन्त्र स्वामी बन बैठा । तब देहलीके बादशाह बलबनने उस पर चढ़ाई की। उसकी खबर पाते ही तुगरल लखनौती छोड़ कर भाग गया । बादशाहने उसका पीछा किया । उस समय रास्तेमें ( सुनारगाँवमें)
(१) J. B. A.S. Vol. VII, p. 43. (२) J. B. A. S., Vol. LXV, Part I, p. 9.
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