Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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चौहान वंश |
चौहान वंश |
उत्पत्ति ।
यद्यपि आजकल चौहानवंशी क्षत्रिय अपनेको अग्निवंशी मानते हैं और अपनी उत्पत्ति परमारोंकी ही तरह वशिष्ठके अग्निकुंड से बतलाते हैं, तथापि वि० सं० १०३० से १६०० ( ई० स० ९७३ से १५४३ तक के इनके शिलालेखोंमें कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है ।
प्रसिद्ध इतिहासलेखक जेम्स टौड साहबको हाँसी के किलेसे वि० सं० १२२५ ( ई० स० १९६७ ) का एक शिलालेखे मिला था । यह चौहान राजा पृथ्वीराज द्वितीयके समयका था । इस लेख में इनको चन्द्रवंशी लिखा था ।
आबू पर्वत परके अचलेश्वर महादेवके मन्दिर में वि० सं० १३७७ ( ई० स० १३२० ) का एक शिलालेख लगा है। यह देवड़ा (चौहान) राव कुंभाके समयका है । इसमें लिखा है:
"
सूर्य और चन्द्रवंश अस्त हो जाने पर, जब संसारमें उत्पात कायम हुआ, तब वत्सऋषिने ध्यान किया । उस समय वत्स ऋषिके ध्यान, और चन्द्रमा के योगसे एक पुरुष उत्पन्न हुआ... ।”
उपर्युक्त लेखसे भी इनका चन्द्रवंशी होना ही सिद्ध होता है । कर्नल टॉड साहब ने भी अपने राजस्थानमें चौहानोंको चन्द्रवंशी, वत्सगोत्री और सामवेदको माननेवाले लिखा है ।
वीसलदेव चतुर्थक समयका एक लेख अजमेर के अजायबघर में रक्खा हुआ है। इसमें चौहानोंको सूर्यवंशी लिखा है ।
ग्वालियर के तँवरवंशी राजा वीरमके कृपापात्र नयचन्द्रसूरिने
( १ ) Chronicals of the Fathan Kings of Delhi.
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