Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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सेम-वंश।
होना लिखा है । पर माधवसेन और केशवसेनके नाम नहीं लिखे । सम्भव है, माधवसेन और केशवसेन, अपने पिताके समयमें ही भिन्न भिन्न प्रदेशोंके शासक नियत कर दिये गये हों। इसीसे अबुलफज़लने उनका राज्य करना लिख दिया हो । और यदि वास्तवमें इन्होंने राज्य किया भी होगा तो बहुत ही अल्प समय तक ।
पूर्वोक्त ताम्रपत्रमें विश्वरूपसेनको लक्ष्मणसेनका उत्तराधिकारी, प्रतापी राजा और यवनोंका जीतनेवाला, लिखा है । उसमें उसकी निम्नलिखित उपाधियाँ दी हुई हैं
अश्वपति, गजपति, नरपति, राजत्रयाधिपति, परमेश्वर, परमभारक, महाराजाधिराज, अरिराज-वृषभाङ्कशङ्कर और गौड़ेश्वर ।।
इससे प्रकट होता है कि यह स्वतन्त्र और प्रतापी राजा था । सम्भव है, लक्ष्मणसेनके पीछे उसके बचे हुए राज्यका स्वामी यही हुआ हो । तबकाते नासिरीमें लिखा है
"जिस समय ससैन्य बख्तियार खिलजी कामरूद ( कामरूप ) और तिरहुतकी तरफ गया उस समय उसने मुहम्मद शेरां और उसके भाईको फौज देकर लखनौर ( राढ ) और जाजनगर (उत्तरी उत्कल ) की तरफ भेजा । परन्तु उसके जीतेजी लखनौतीका सारा इलाका उसके अधीन न हुआ।” अतएव, सम्भव है, इस चढ़ाईमें मुहम्मद शेरां हार गया हो, क्योंकि विश्वरूपसेनके ताम्रपत्रमें उसे यवनोंका विजेता लिखा है । शायद उस लेखका तात्पर्य इसी विजयसे है। यदि यह बात ठीक हो तो लक्ष्मणसेनके बाद वङ्गदेशका राजा यही हुआ होगा और माधवसेन तथा केशवसेन विक्रमपुरके राजा न होंगे, किन्तु केवल भिन्न भिन्न प्रदेशोंके ही शासक रहे होंग । __ यद्यपि अबुलफज़लने विश्वसेनका नाम नहीं लिखा तथापि उसका १४ वर्षसे अधिक राज्य करना पाया जाता है।
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