Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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पाल-वंश।
पाल-वंश।
जाति, और धर्म । पालवंशके राजा सूर्यवंशी हैं । यह बात महाराजाधिराज वैयदेवके कमौलीके दानपत्रसे प्रकट होती है। उसमें लिखा है
एतस्य दक्षिणदृशो वंशे मिहिरस्य जातवान्पूर्व । विग्रहपालो नृपतिः। अर्थात् विष्णुके दहने नेत्ररूप इस सूर्य-वंशमें पहले पहल विग्रहपाल राजा हुआ।
आगे चल कर उसीमें लिखा है
तस्योर्जस्वलपौरुषस्य नृपतः श्रीरामपालोऽभवत्
पुत्रः पालकुलाब्धिशीतकिरणः । इन राजाओंके नामोंके अन्तमें पाल शब्द मिलता है । यद्यपि, बङ्गाल, मगध और कामरूप पर इनका प्रभुत्व था तथापि, कुछ दिनोंके लिए, इनका राज्य पूर्वोक्त देशोंके सिवा उड़ीसा मिथिला और कन्नौजके पश्चिम तक भी फैल गया था ।
अनेक पश्चिमी शोधक विद्वान इनको पूँइहार ब्राह्मण कहते हैं ! पर अब तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला । ये लोग बौद्ध धर्मावलम्बी थे। इनके राज्य-समयमें यद्यपि भारतसे बौद्धधर्मका लोप होना प्रारम्भ हो गया था तथापि इनके राज्यमें, और विशेष कर मगध, उसकी प्रबलता विद्यमान थी। उस समय भी विक्रमशील और नालन्द नामक नगरोंमें इस धर्मके जगत्प्रसिद्ध संघाराम ( मठ ) थे । बहुत प्राचीन कालसे ही चीन, तातार, स्याम, ब्रह्मदेश आदिके बौद्ध उन मठोंमें विद्यार्जनके लिए आया करते थे । ग्यारहवीं शताब्दीमें विक्रमशील-मठका प्रसिद्ध विद्वान 1 Ep. Ind., Vol. II, P. 350.
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