Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
नामका प्रतापी राजा सामन्तसेनसे बहुत पहले हो चुका था और सेनवंशी वीरसेन तो स्वयं दक्षिणसे हारकर वहाँ आया था।
हरिमिश्र घटककी कारिका (वंशावली) में लिखा है " महाराज आदिशूरने कौलाचन्देस ( कन्नौज राज्यमें ) से क्षितीश, मेधातिथि, वीतराग, सुधानिधि और सौभरि, इन पाँच विद्वानोंको परिवारसहित लाकर यहाँ पर रक्खा । उसके पश्चात् जब विजयसेनका पुत्र, बल्लालसेन वहाँकी राजगद्दी पर बैठा तब उसने उन कुलीन ब्राह्मणों के वंशजोंको बहुतसे गाँव आदि दिये।" ___ इससे सिद्ध होता है कि आदि-शूर पालवंशी राजा देवपालसे भी पहले हुआ था। ___ कुछ लोगोंका अनुमान है कि आदिशूर कन्नौजके राजा हर्षवर्धनके समकालीन राजा शशाङ्कसे आठवीं पीढ़ीमें था । यदि यही अनुमान ठीक हो तब भी वह बङ्गालके सेनवंशी राजाओंसे बहुत पहले हो चुका था। पण्डित गौरीशङ्करजीका अनुमान है कि कन्नौजसे कुलीन ब्राह्मणोंको बङ्गालमें लाकर बसानेवाला आदिशूर, शायद कन्नौजका राजा भोजदेव हो, जिसका दूसरा नाम आदि-वाराह था । वाराह और शूकर ये दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। अतएव आदिवाराहका आदिशूकर और शूकरका प्राकृत आदिके संसर्गसे शूर हो गया होगा । अतः सम्भव है कि आदिवाराह और आदिशूर एक ही पुरुषके नाम हों।।
यह भी अनुमान होता है कि कन्नौजके राजा भोजदेव, महेन्द्रपाल, महीपाल आदि, और बङ्गालके पालवंशी एक ही वंशके हों; क्योंकि एक तो ये दोनों सूर्यवंशी थे, दूसरे, जब राठोड़ राजा इन्द्रराज तीसरेने महीपाल ( क्षितिपाल ) से कन्नौजका राज्य छीन लिया तब (१) J. Bm. A. S., 1896, P.21.
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