Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
सेन-वंश।
जाति । पालवांशयोंका राज्य अस्त होने पर बङ्गालमें सेन-वंशी राजाओंकाः राज्य स्थापित हुआ । यद्यपि इनके शिलालेखों और दान-पत्रोंसे प्रकट होता है कि ये चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे और अद्भुतसागर नामक ग्रन्थसे भी यही बात सिद्ध होती है, तथापि देवपर (बङ्गाल) में मिले हुए बारहवीं शताब्दीके विजयसेनके लेखमें इन्हें ब्रह्मक्षत्रिय लिखा है
तस्मिन्सेनान्ववाये प्रतिसुभटशतोत्सादनब्रह्मवादी ।
सब्रह्मक्षत्रियाणामजनि कुलशिरोदामसामन्तसेनः ॥ अर्थात् उस प्रसिद्ध सेन-वंशमें, शत्रुओंको मारनेवाला, वेद पढ़नेवाला तथा ब्राह्मण और क्षत्रियोंका मुकुट-स्वरूप, सामन्तसेन उत्पन्न हुआ ।
बङ्गालके सेनवंशी वैद्य अपनेको विख्यात राजा बल्लालसेनके वंशज बतलाते हैं । जनरल कनिङ्गहामका भी अनुमान है कि वङ्देशके सेनवंशी राजा क्षत्रिय न थे, वैद्य ही थे। परन्तुं रायबहादुर पण्डित गौरीशङ्कर ओझा उनसे सहमत नहीं । वे सेनवंशी राजा बल्लालसेनको वैध बलालसेनसे पृथक अनुमान करते हैं। यही अनुमान ठीक प्रतीत होता है । क्योंकि बङ्गालमें बल्लालसेन नामका एक अन्य जमींदार भी बहुत विख्यात हो चुका है । वह वैद्यजातिका था। उसका भी एक जीवनचरित 'वलाल-चरित' के नामसे प्रसिद्ध है । उसके कर्ता गोपालभट्टने, जो उक्त बल्लालसेनका गुरु था, अपने शिष्यको वैद्यवंशी लिखा है । उससे यह भी सिद्ध होता है कि वैद्य बल्लालसेन सेनवंशी (१) Ep. Ind., Vol. I, P. 307.
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