Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
उसकी यादगार में वि० सं० १९७६ ( ई०स० १११९ = श०सं० १०४१) में इसने अपने पुत्र लक्ष्मणसेनके नामका संवत् प्रचलित किया । तिरहुतमें इस संवत्का आरम्भ माघ शुक्ल ९ से माना जाता है ।
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इस संवत् के समय के विषय में भिन्न भिन्न प्रकारके प्रमाण एक दूसरे से विरूद्ध मिलते हैं । वे ये हैं
( क ) तिरहुत के राजा शिवसिंहदेव के दानपत्रमें लक्ष्मणसेन- सं०२९३ श्रावण शुक्ल ७, गुरुवार, लिख कर साथ ही - " सन् ८०९, संवत् १४५५, शाके १३२१ " लिखा है ।
( ख ) डाकुर राजेन्द्रलाल मित्रके मतानुसार ई०स० ११०६ ( वि०सं० ११६२, श०सं० १०२७ ) के जनवरी ( माघशुक्ल १ ) से उसका प्रारम्भ हुआ । ' बङ्गालका इतिहास' नामक पुस्तक के लेखक, मुन्शी शिवनन्दन सहायका, भी यही मत है ।
( ग ) मिथिला के पञ्चाङ्गों के अनुसार लक्ष्मणसेन - संवत्का आरम्भ शक संवत् १०२६ से १०३१ के बीच किसी वर्षसे होना सिद्ध होता हैं | परन्तु इससे निश्चित समयका ज्ञान नहीं होता ।
(घ ) अबुलफजुलके लेखानुसार इस संवत्का आरम्भ शक संवत् १०४१ में हुआ था ।
(ङ) स्मृति-तत्त्वामृत नामक हस्त लिखित पुस्तकके अन्त में लिखे संवत् के अनुसार अबुलफ़ज़लका पूर्वोक्त मत ही पुष्ट होता है ।
उपर्युक्त शिवसिंहके लेख और पञ्चाङ्गों आदि के आधार पर डाक्टर कीलहानने गणित किया तो मालूम हुआ कि यदि शक संवत् १०२८ " मृगशिर- शुक्ला १, को इसका प्रारम्भ माना जाय तो पूर्वोक्त ६
() J. B. A. S., Vol. 47, Part'l, p. 398. (2) Book of Indian Eras, p. 76-79. ( ३ ) J. B. A. S, Vol. 57. part. I, p. 1-2. ( ४ ) Ind. Anti Vol. XIX,
5, 6.
P.
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