Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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सेन-वंश ।
विश्वरूपसेन । जरनल आव् दि बाम्बे एशियाटिक सोसाइटीमें इस ताम्रपत्रको सातवें वर्षका लिखा है। यह गलतीसे छप गया है। क्योंकि लखके फोटोमें अङ्क तीन स्पष्ट प्रतीत होता है।
तबकाते नासिरीके कर्ताने लखनौती-राज्यके विषयमें लिखा है
यह प्रदेश गङ्गाके दोनों तरफ फैला हुआ है। पश्चिमी प्रदेश राल (राढ़ )कहलाता है । इसीमें लखनौती नगर है । पूर्व तरफके प्रदेशको वरिन्द (वरेन्द्र ) कहते हैं।
आगे चल कर, अलीमर्दानके द्वारा बख्तियारके मारे जाने के बादके वृत्तान्तमें, वही ग्रन्थकर्ता लिखता है कि अलीमर्दानने दिवकोट जाकर राजकार्य सँभाला और लखनौतीके सारे प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इससे प्रतीत होता कि मुहम्मद बख्तियार खिलजी समग्र सेनराज्यको अपने अधिकार-भुक्त न कर सका था।
अबुलफजलने लक्ष्मणसेनका केवल सात वर्ष राज्य करना लिखा है, परन्तु यह ठीक नहीं।
उमापतिधर। इस कविकी प्रशंसा जयदेवने अपने गीतगोविन्दमें की है-" वाचः पल्लवयत्युमापतिधरः ”—इससे प्रकट होता है कि या तो यह कवि जयदेवका समकालीन था या उसके कछ पहले हो चुका था। गीतगोविन्दकी टीकासे ज्ञात होता है कि उक्त श्लोकमें वर्णित उमापतिधर, जयदेव, शरण, गोवर्धन और धोयी लक्ष्मणसेनकी सभाके रत्न थे।
वैष्णवतोषिणीमें (यह भागवतकी भावार्थदीपिका नामक टीकाकी टीका है ) लिखा है-“श्रीजयदेवसहचरेण महाराजलक्ष्मणसेनमन्त्रिवरेण उमापतिधरण" अर्थात् जयदेवके मित्र और लक्ष्मणसेनके मन्त्री उमापतिधरने । इससे इन दोनोंकी समकालीनता प्रकट होती है।
(१) Raverty's Tabkatenasiri, P. 588. (२) Rarertys's Tabkata rssiri, P. 578. (३)क्षत्रियपत्रिका, खण्ड १३, सख्या ५, ६, पृ. ८२.
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