Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
साधु दीपांकुर-श्रीज्ञान तिब्बत गया । वहाँ उसने बौद्धमतके महायानसम्प्रदायका प्रचार किया था । ___ पालवंशी राजा, बौद्ध धर्मावलम्बी होने पर भी, ब्राह्मणोंका सम्मान किया करते थे। ब्राह्मण ही उनके मन्त्री होते थे। उनकी राजधानी औदन्तपुरी थी। उनके समयमें शिल्प और विद्यापूर्ण उन्नति पर थी । उनके शिला-लेखों और ताम्रपत्रों में प्रायः राज्यवर्ष ही लिखे मिलते हैं, संवत् बहुत ही कम देखने में आये हैं । इसीसे उनका ठीक ठीक समय निश्चित करना बहुत कठिन हो गया है। __ यद्यपि तिब्बतके विख्यात बौद्ध लेखक तारानाथने और फारसीके प्रसिद्ध लेखक अबुलफज़लने इनकी वंशावलियाँ लिखी हैं तथापि उनमें सच्चे नाम बहुत ही कम हैं।
१-दयितविष्णु ।। यह साधारण राजा था । इसीके समयसे इस वंशका वृत्तान्त मिलता है।
२-वप्यट। यह दयितविष्णुका पुत्र था ।
३-गोपाल (पहला)। यह वप्यटका पुत्र था । यही इस वंशमें पहला प्रतापी राजा हुआ। खालिमपुरके ताम्रपत्रमें लिखा है कि “अराजकता और अत्याचारोंको दूर करनेके लिए धर्मपालको लोगोंने स्वयं अपना स्वामी बनाया।" तारानाथने भी लिखा है कि “बङ्गाल, उड़ीसा और पूर्वकी तरफके अन्य पाँच प्रदेशोंमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि मनमाने राजा बन गये थे। उनको नीति-पथ पर चलानेवाला कोई बलवान् राजा न था।" (१) Ep. Ind., Vol. IV. p. 248. (२) c. S. R., Vol. XVI.
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