Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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मालवेके परमार।
शिलालेखों, ताम्रपत्रों और नवसाहसाङ्कचरितमें वह भी राजा ही लिखा गया है। परन्तु तिलकमञ्जरीका कर्ता, जो मुञ्ज और भोज दोनोंके समयमें विद्यमान था, मुञ्जके बाद भोजको ही राजा मानता है और सिन्धुराजको केवल भोजके पिताके नामसे लिखता है । प्रबन्ध-चिन्तामणिकारका भी यही मत है।
इस राजाका नाम शिलालेखों, ताम्रपत्रों, नवसाहसाङ्कचरित और तिलकमअरीमें सिन्धुराज ही मिलता है। परन्तु प्रबन्धचिन्तामाणिकार संधिल
और भोजप्रबन्धका कर्ता बल्लाल पण्डित सिन्धुल लिखता है । शायद ये इसके लौकिक ( प्राकृत ) नाम हो । नवसाहसाङ्कचरितमें इसके कुमारनारायण और नवसाहसाङ्क ये दो नाम और भी मिलते हैं । यह बड़ा ही वीर पुरुष था। इसके समयमें परमारोंका राज्य विशेष उन्नति पर था। इसने हूण, कोशल, वागड़, लाट और मुरलवालोंको जीता था । इस प्रकारके अनेक नवीन साहस करनेके कारण ही वह नवसाहसाङ्क कहलाया । उदयपुरकी प्रशस्तिमें लिखा है:तस्यानुजो निर्जितहूणराजः श्रीसिन्धुराजो विजयार्जितश्रीः ।
अर्थात्-उस मुञ्जका छोटा भाई सिन्धुराज हूणोंको जीतनेवाला हुआ।
हूण-क्षत्रियोंका जिकै कई जगह राजपूतानेकी ३६ जातियोंमें किया गया है।
पद्मगुप्त ( परिमल ) ने नवसाहसाङ्कचरितमें, जिसे उसने वि० सं० १०६० के लगभग बनाया था, सिन्धुराजका जीवनचरित इस तरह लिखा है:-- . पहले सर्गमें-कविने शिवस्तुतिके बाद मुञ्ज और सिन्धुराजको,
(१) Rajastan, P. 76.
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