Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मालवेके परमार।
भोजकी बनाई छपी हुई पुस्तकोंमें सरस्वतीकण्ठाभरण साहित्यकी प्रसिद्ध पुस्तक है। उसमें पाँच परिच्छेद हैं । उस पर पण्डित रामेश्वर भट्टने टीका लिखी है । भोजकी चम्पू-रामायण पण्डित रामचन्द्र बुधेन्द्रकी टीकासहित छपी है । पुस्तककी समाप्ति पर कर्ताका नाम विदर्भराज लिखा है । परन्तु रामचन्द्र बुधेन्द्र और लक्ष्मणसूरि उसको भोजकी बनाई हुई लिखते हैं।
भोजकी सभामें अनेक विद्वान थे । भोजप्रबन्ध और प्रबन्धचिन्तामणि आदिमें कालिदास, वररुचि, सुबन्धु, बाण, अमर, रामदेव, हरिवंश, शङ्कर, कलिङ्ग, कपूर, विनायक, मदन, विद्याविनोद, कोकिल, तारेन्द्र, राजशेखर, माघ, धनपाल, सीता, पण्डिता, मयूर, मानतुङ्ग आदि विद्वानोंका भोजहीकी सभामें रहना लिखा है । परन्तु इनमेंसे बहुतसे विद्वान भोजसे पहले हो गये थे। इस लिए इस नामावली पर हम विश्वास नहीं कर सकते।
मुञ्ज और सिन्धुराजके समयके कुछ विद्वान् भोजके समय तक विद्यमान थे। इनमें से एक धनपाल था। उसका छोटा भाई शोभन जैन हो गया। यह सुन कर भोजने कुछ समय तक जैनोंका धारामें आना बन्द कर दिया । परन्तु शोभनने धनपालको भी जैन कर लिया । धनपालकी रची तिलकमनरीमें भोज अपने विषयकी कुछ बातें लिखाना चाहता था। पर कविने उन्हें न लिखा । अतएव भोजने उसे नष्ट कर दिया । किन्तु अन्तमें उसे इसका बहुत पश्चात्ताप हुआ । उस समय उसीकी आज्ञासे धनपालकी कन्याने, जिसको वह पुस्तक कण्ठाय थी, भोजको वह पुस्तक सुनाई । इसीसे उसकी रक्षा हो गई।
भोजके समयमें भी एक कालिदास था, जो मेघदूत आदिके कर्तासे भिन्न था । परन्तु इसका कोई ग्रन्थ न मिलनेसे इसका विशेष वृत्तान्त विदित नहीं । प्रबन्धकारोंने इसकी प्रतिभा और कुशाग्रबुद्धिका वर्णन
१२१
For Private and Personal Use Only