Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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पड़ोसी राज्य ।
पड़ोसी राज्य । अब हम उस समयके मालवेके निकटवर्ती उन राज्योंका भी संक्षिप्तः वर्णन करते हैं जिनसे परमारोंका घनिष्ठ सम्बन्ध था। वे राज्य ये थे:--.
गुजरातके चौलुक्यों और बघेलोंका राज्य, दाक्षणके चौलुक्योंका राज्य, चेदिवालों और चन्देलोंका राज्य ।
गुजरात। अठारहवीं सदीके मध्यमें वल्लभी-राज्यका अन्त हो गया । उसके उपरान्त चावड़ा-वंश उन्नत हुआ। उसने अणहिल्लपाटण ( अनहिलवाड़ा) नामक नगर बसाया। कोई दो सौ वर्षों तक वहाँ पर उसका राज्य रहा । ई० स० ९४१ में चौलुक्य (सोलङ्की) मूलराजने चावडोंसे गुजरात छीन लिया । उस समयसे ई० स० १२३५ तक, गुज रातमें, मूलराजके वंशजोंका राज्य रहा । परन्तु ई० स० १२३५ में धौलकाके बघेलोंने उनको निकाल कर वहाँ पर अपना राज्य स्थापन कर दिया । ई० स० १२९६ में मुसलमानोंके द्वारा वे भी वहाँसे हटाये गये। गुजरात वालोंके और परमारोंके बीच बराबर झगड़ा रहता था।
दक्षिणके चौलुक्य। ई० स० ७५३ से ९७३ तक, दक्षिणमें, मान्यखेटके राष्ट्रकूटोंका बड़ा ही प्रबल राज्य रहा। इनका राज्य होने के पूर्व वहाँके चौलुक्य भी. बड़े प्रतापी थे। उस समय उन्होंने कन्नौजके राजा हर्षवर्धनको भी हरा दिया था। परन्तु, अन्तमें, इस राष्ट्रकूटवंशके चौथे राजा दान्तिदुग द्वारा वे हराये गये । ऐसा भी कहा जाता है कि दान्तिदुर्गने मालवाविजय करके उज्जैनमें बहुतसा दान दिया था। उसके पुत्र कृष्णके समयमें राष्ट्रकूटोंका बल और भी बढ़ गया था । कृष्णने इलोरा पर कैलास (१)A. S. W. I., No. 10, p. 92.
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