Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भास्तके प्राचीन राजवंश
नामक मन्दिर बनवाया । यह मन्दिर पर्वतमें ही खोद कर बनाया गया है । इनके वंशमें आठवाँ राजा गोविन्द ( द्वितीय ) हुआ। उसके समयमें इनका राज्य मालवेकी सीमा तक पहुंच गया था । लाट देश (भड़ोंच ) को जीत कर वहाँका राज्य गोविन्दने अपने भाई इन्द्रको दे दिया । इन्द्रसे इस वंशकी एक नई शाखा चली। ____ इसी राष्ट्रकूट-वंशके ग्यारहवें राजा अमोघवर्षने मान्यखेट बसाया
था। इस वंशके अठारहवें राजा खोट्टिगको मालवेके राजा सीयक (हर्ष) ने और उन्नीसवें कर्कदेवको चौलुक्य तैलप (दूसरे ) ने हराया था। इसी तैलपसे कल्याणके पश्चिमी चौलुक्योंकी शाखा चली । इस शाखाका राज्य ई० स० ११८३ तक रहा । मुझको भी इसी तैलपने मारा था । इस शाखाके छठे राजा सोमेश्वर ( दूसरे ) के सामनेसे भोजको भागना . पड़ा था। इसी शाखाके सातवें राजा विक्रमा'दित्यने मालवेके परमारोंको सहायता दी थी।
पिछले यादव राजा। बारहवीं सदीमें, दक्षिणमें, देवगिरि (दौलताबाद ) के यादवोंका प्रताप प्रबल हुआ। इस शाखाने प्राय: ई० स० ११८७ से १३१८ तक राज्य किया । जिस समय सुभट वर्माने गुजरात पर चढ़ाई की उस समय सिंघन भी उसके साथ था। इस वंशका अन्तिम प्रतापी राजा रामचन्द्र, भोज (द्वितीय ) का मित्र था।
चेदिके राजा।। हैहय-वंशियोंका राज्य त्रिपुरी में था। उसे अब तेवर कहते हैं । यह नगर जबलपुरके पास है। नवीं सदीमें कोकल्ल ( प्रथम ) से यह वंश चला । इनके और परमारोंके बीच बहुधा लड़ाई रहा करती थी। मालदेके राजा मुझने इस वंशके दसवें राजा युवराजको और भोज (प्रथम)
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