Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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मालवेके परमार।
व्याकरण, विशालकीर्ति आदिकोंको तर्कशास्त्र, विनयचन्द्र आदिको जैनसिद्धान्त तथा बालसरस्वती महाकवि मदनको काव्यशास्त्र पढ़ाया । __ आशाधरने अपने बनाये हुए ग्रन्थोंके नाम इस प्रकार दिये हैं:-(१) प्रमेयररत्नाकर ( स्याद्वादमतका तर्कग्रन्थ ), (२) भरतेश्वराभ्युदय काव्य और उसकी टीका, (३) धर्मामृतशास्त्र, टीकासहित (जैनमुनि
और श्रावकोंके आचारका ग्रन्थ), (४) राजीमतीविप्रलम्भ (नेमिनाथविषयक खण्ड-काव्य ), (५) अध्यात्मरहस्य (योगका ), यह ग्रन्थ उसने अपने पिताकी आज्ञासे बनाया था, ( ६ ) मूलाराधनाटीका, इष्टोपदेश टीका, चतुर्विशतिस्तव आदिकी टीका, ( ७ ) क्रियाकलाप ( अमरकोष-टीका ), (८) रुद्रट-कृत काव्यालङ्कार पर टीका, (९) सटीक सहस्रनामस्तव (अर्हतका), (१०) सटीक जिनयज्ञकल्प, (११) त्रिषष्ठिस्मृति ( आर्ष महापुराणके आधार पर ६३ महापुरुषोंकी कथा ), (१२) नित्यमहोद्योत ( जिनपूजनका ), (१३) रत्नत्रयविधान ( रत्नत्रयकी पूजाका माहात्म्य ) और (१४) वाग्भटसंहिता ( वैद्यक ) पर अष्टाङ्गहृदयोद्योत नामकी टीका । उल्लिखित ग्रन्थों से त्रिषष्टिस्मृति वि० सं० १२९२ में और भव्यकुमुदचन्द्रिका नामकी धर्मामृत शास्त्र पर टीका वि० सं० १३०० में समाप्त हुई । यह धर्मामृतशास्त्र भी आशाधरने देवपालदेवके पुत्र जैतुगिदेवके ही समयमें बनाया था।
१७-सुभटवर्मा। यह विन्ध्यवर्माका पुत्र था। उसके पीछे गद्दी पर बैठा । इसका दूसरा नाम सोहड़ भी लिखा मिलता है । वह शायद सुभटका प्राकृत रूप होगा। अर्जुनवर्माके ताम्रपत्रमें लिखा है कि सुभटवर्माने अनहिलवाड़ा (गुजरात) के राजा भीमदेव दूसरेको हराया था।
प्रबन्धचिन्तामणिमें लिखा है कि गुजरातको नष्ट करनेकी इच्छासे (१) प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ २४९ ।
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