Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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'भारतके प्राचीन राजवंश
वि० सं० १४९६ ( ई. स. १४३९) के गुहिलोंके लेखमें लिखा है कि मालवेका राजा गोगादेव लक्ष्मणसिंह द्वारा हराया गया यो । मिराते सिकन्दरीमें लिखा है कि हि. स. ७९९ (ई. स० १३९७-वि० सं० १४५४) के लगभग यह खबर मिली कि माण्डूका हिन्दू-राजा मुसलमानों पर अत्याचार कर रहा है । यह सुनकर गुजरातके बादशाह ज़फरखाँ (सुजफ्फर, पहले ) ने माण्डू पर चढ़ाई की। उस समय वहाँका राजा अपने मजबूत किले में जा घुसा । एक वर्ष और कुछ महिने वह जफरखाँ द्वारा घिरा रहा । अन्तमें उसने मुसलमानों पर अत्याचार न करने और कर देनेकी प्रतिज्ञायें करके अपना पीछा छुड़ाया । जफरखाँ वहाँसे अजमेर चला गया।
तबकाते अकबरी और फ़रिश्तामें माण्डूके स्थान पर माण्डलगढ़ लिखा है। उक्त संवत्के पूर्व ही मालवे पर मुसलमानोंका अधिकार हो गया था । इसलिए मिराते सिकन्दरीके लेख पर विश्वास नहीं किया जा सकता। राजपूतानेके प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता श्रीमान् मुन्शी देवीप्रसादजीका अनुमान है कि यह माण्डू शब्द मण्डोरकी जगह लिख दिया गया है। ___ शमसुद्दीन अल्तमशके पीछे हि० स०६९० (ई० स० १२९१ वि० सं० १३४८) में जलालुद्दीन फीरोजशाह खिलजीने उजैन पर दखल कर लिया। उसने अनेक मन्दिर तोड़ डाले । इसके दो वर्ष बाद, वि० सं १३५० में, फिर उसने मालवे पर हमला किया और उसे लूटा; तथा उसके भतीजे अलाउद्दीनने भिलसाको फतह करके मालवेके पूर्वी हिस्से पर भी अधिकार कर लिया ।
मिराते सिकन्दरीसे ज्ञात होता है कि हि० स० ७४४ ( ई० स० १३४४=वि० सं० १४०१ ) के लगभग मुहम्मद तुगलकने मालवेका सारा इलाका अजीज हिमारके सुपुर्द किया। इसी हिमारको उसने धाराका (१) Bhavanagar Insep., 114. (२) Builoy's Gajrat, p. 43.
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