Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतके प्राचीन राजवंश
ये दान दिये गये । परन्तु लेख खण्डित है । इससे क्या क्या दिया गया, इसका पता नहीं चलता । वि० सं० १३१७ (ई० स० १२६०) का.. इसी राजाका, एक और भी ताम्रपत्र मान्धाता गाँवमें मिला हैं। यह मण्डपदुर्गसे दिया गया था । इस पर परमारोंकी मुहर-स्वरूप गरुड और सर्पका चिह्न मौजूद है । यह दान अमरेश्वर-क्षेत्रमें ( कपिला
और नर्मदाके सङ्गम पर स्नान करके ) दिया गया था । उस समय इस गजाका मन्त्री मालाधर था।
२२-जयसिंहदेव (तीसरा)। यह जयवर्माका उत्तराधिकारी हुआ। वि० सं० १३२६ (ई० स० १२६९) का इसका एक लेख पथारी गाँवमें मिला है। परन्तु इसमें इसकी वंशावली नहीं है। विशालदेवके एक लेखमें लिखा है कि उसने धागपर चढ़ाई की और उसे लूटा । यह विशालदेव अनहिलवाड़ेका बघेल राजा था । परन्तु इसमें मालवेके राजाका नाम नहीं लिखा। यह चढ़ाई इसी जयसिंहदेवके समयमें हुई या इसके उत्तराधिकारियोंके समयमें, यह बात निश्चय-पूर्वक नहीं कह सकते । ऐसा कहते हैं कि गुजरातके कवि व्यास गणपतिने धाराके इस विजयपर एक काव्य लिखा था।
२३-भोजदेव (दूसरा )। हम्मीर-महाकाव्यके अनुसार यह जयसिंहका उत्तराधिकारी हुआ । ई० स० ११९२ में दिल्लीका राजा पृथ्वीराज मारा गया। उसी साल अजमेर भी मुसलमानोंके हाथमें चला गया। मुसलमानोंने अजमेर में अपनी तरफसे पृथ्वीराजके पुत्रको अधिष्ठित किया । परन्तु बहुतसे
(१) Ep. Ind., Vol. IX, p. 117. (२) K. N. I.,232. (३) Ind. Ant., V. VI, P. 191. (४) K. N. I., 233.
१६४
For Private and Personal Use Only