Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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मालवेके परमार।
साथ ही 'स्व' झारखाकी भी समाप्ति हो गई और मालवेके राज्यपर 'क' शाखावालोंका अधिकार हो गया। मालवा-राज्यके मालिक होनेके बाद देवपालदेवने-" परमभट्टारक-महाराजाधिराज परमेश्वर" आदि स्वतन्त्र राजाके खिताब धारण किये थे।
उसके समयके चार लेख मिले हैं। पहला वि० सं० १२७५ (ई०स० १२१८ ) का, हरसौदा ग्रामको । दूसरा वि० सं० १२८६ (ई० स० १२२९) कां । तीसरा वि० सं० १२८२ (ई० स० १२३२ ) का। ये दोनों उदयपुर ( गवालियर ) से मिले हैं । चौथा वि० सं० १२८२ ( ई० स० १२२५) का एक ताम्रपत्र हैं। यह ताम्रपत्र हालहीमें मान्धाता गाँवमें मिला है । यह माहिष्मती नगरीसे दिया गया था। इस गाँवको अब महेश्वर कहते हैं । यह गाँव इन्दोर-राज्यमें है।
देवपालदेवके राज्य-समय अर्थात् वि० सं० १२९२ (ई०स०१२३५)में आशाधरने त्रिषष्ठिस्मृति नामक ग्रन्थ समाप्त किया तथा वि० सं० १३०० (ई० स० १२४३) में जयतुर्गादेवके राज्य-समयमें धर्मामृतकी टीका लिखी । इससे प्रतीत होता है कि वि० सं० १२९२ और १३०० के बीच किसी समय देवपालदेवकी मृत्यु हुई होगी । इसी कविके बनाये जिन-यज्ञकल्प नामक पुस्तकमें ये श्लोक हैं:
विक्रमवर्षसपंचाशीतिद्वादशशतेष्वतीतेषु । आश्विनसितान्त्यदिबसे साहसमल्लापराख्यस्य ॥ श्रीदेवपालनृपतेः प्रमारकुलशेखरस्य सौराज्ये ।
नलकच्छपुरे सिद्धो प्रन्थोऽयं नेमिनाथचैत्यगृहे ॥ इनसे पाया जाता है कि वि० सं० १२८५, आश्विन शुक्ला पूर्णिमाके दिन, नलकच्छपुरमें, यह पुस्तक समाप्त हुई। उस समय देवपाल राजा था, जिसका दूसरा नाम साहसमल्ल था । (१) Ind. Ant., Vol. xx. p. 311. (२) Ind. Ant., Vol.xx,p. 83. (३) Ind, Ant, To1. XX, p. 83.(१) Ep. Ind., Vol. IX, p. 103.
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